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________________ २०२ ] प्राचार्यश्री तुलसी अभिनन्दन अन्य [प्रथम नये चिकित्सक का। प्राची और प्रतीची के दो माझियों के हाथों में मानवता की भाग्य तरी डगमगाती हुई तट की ओर नहीं, मझधार की ओर जा रही है। इन कूटनीतिक माँझियों मे, बीमार मानवता की तरी, तट की ओर नहीं जा सकती। मानवता की सुरक्षा भौतिक प्रगति नहीं कर सकती । तो, मानवता को प्रात पुकार पर प्राची और प्रतीची के गगन में दो नक्षत्र उदित हो ही गए आखिर । हाँ, मानवता की सही चिकित्सा के लिए दो मसीहा प्राची और प्रतीची में आविर्भूत हुए.--आचार्य तलमी और बुकमैन । इन दोनों चिकित्सकों ने मानवता की दुखती हुई नसों पर उंगली रखी। इनका निदान यही हुआ-मानवता के विनाश का एक ही कारण है : अनैतिकता; और इसकी उपयुक्त चिकित्सा है नैतिक जागृति । नैतिकता के ये दो उद्गाता अपने-अपने क्षितिज पर चमके, स्वब चमके । प्रतीची का बुकमैन शारीरिक रूप से अभी-अभी अम्त हो चुका है; किन्तु, संसार की अरबों प्रात्मानों में उस महापुरुष का शंखनाद प्रतिध्वनित हो रहा है और अरबों मस्तक आज भी उसकी स्मृति में श्रद्धावनत हैं। और प्राचार्यश्री तुलसी ; प्राची नभ-तटी का यह मार्वभौम तरुण भास्कर आज भी उद्दीप्त है। मानवता का यह नया मसीहा उन्हीं नक्षत्रों में से एक है, जिनमे बद्ध, महावीर, कबीर,मर, तुलसी, नानक, चैतन्य, अरविन्द, गांधी, विवेकानन्द और रवीन्द्र का अक्षत प्रकाश पाज भी विश्व को परमानन्द का लक्ष्य-बिन्द बतला रहा है। इस नये मसीहा ने निदान किया-मानवता क्यों पीड़ित है. गान्ति क्यों भयभीत है ? क्यों व्यक्ति विनाश की ओर वेग मे दौड़ा जा रहा है ? इन सबों का एक ही निदान बतलाया है इसने-अनैतिकता और इसमे उत्पन्न अचारित्रिकता; भौतिकता की उच्छ खल प्रगति और इससे उत्पन्न अनाध्यात्मिकता, असंयम और इसमे उत्पन्न महत्त्वाकांक्षा का व्यामोह तथा उद्वेग । चिकित्सा के लिए तीन औषधियां बतलाई, इस नैतिक भिषग शिरोमणि ने ; नैतिकता, अध्यात्म और संयम। अहिसा, सत्य, अपरिग्रह, अस्तेय और ब्रह्मचर्य का सरल और सुपाच्य पंचामृत 'अणुव्रत' के नाम से पीड़ित विश्व के गले में डालते हा दम मानवता के जय-घोषक ने उद्घोषणा की-प्रणवत-आन्दोलन एक नैतिक क्रान्ति है । इसका उद्देश्य है, मनुष्य का आध्यात्मिक सिचन । आध्यात्मिक प्रगति मनुष्य की सर्वोच्च प्रगति ही नहीं, सर्वांगीण प्रगति है। इस प्रगति का मूल कार्य है--चरित्र को मुदढ़ स्थापना तथा मंत्री द्वारा शान्ति की रक्षा। सभी प्रकार के स्वास्थ्य लाभ के लिए संयम की अत्यधिक प्रावश्यकता है। इतना ही नहीं, मंयम को उसने जीवन-साधना बतलाया और नैतिकता को जीवन कला। उमने संयम से रंचमात्र भी विलगाव को जीवन के लिए अभिशाप कहा और पादशं उद्घोषित किया-संयम : खलु जीवनम् । युद्ध-देवता का तीसरा चरण इस यान्त्रिक युग में मानवता और शान्ति का शत्रु यद्ध है । बीसवीं शताब्दी में दो दशाब्दियों का अन्तर देकर दो विश्व-युद्ध हो चुके हैं । भयंकर नर-महार हुए हैं । सैनिक, असैनिक तथा प्रबोध शिशु भी युद्ध-देवता की विकराल भट्टी में झोंक दिये गए। हीरोशिमा और नागासाकी विश्व-युद्ध के द्वितीय परिच्छेद के वे अमर आकर्षण हैं, जहाँ मानवता की छाती एटम बम के प्रहारों में चाक-चाक करदी गई और जापान के ये दो सुनहले पंख पन-भर में जला कर खाक कर दिये गये। अाज भी वही स्थिति है, वही रंग । युद्ध-देवता का तीसरा चरण उठ चुका है। मानवता की गर्दन पुर्व-पश्चिम के दो 'क' की उंगलियों के बीच में दबी पड़ी है। अण-परीक्षण, मामयिक चनौतियां, अन्तरिक्ष-प्रतियोगिता, शस्त्रीकरण प्रादि शीत-युद्ध को पराकाष्ठा की ओर ले जा रहे हैं । राष्ट्र-संघ-जैमा मंघटन भी शीत-युद्ध की उष्ण-परिणति को रोक रखने में असमर्थ मिद्ध हो रहा है । संसार के सारे राजनीतिज्ञ मिलते हैं, शिखर सम्मेलन करते हैं, गरम-गरम भाषण दे जाते हैं। किन्तु, ये दो 'क' अपनी एक ही घड़की से मानवता की रही-सही आशा को धूल में मिला देते हैं।
SR No.010719
Book TitleAacharya Shri Tulsi Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Dhaval Samaroh Samiti
PublisherAcharya Tulsi Dhaval Samaroh Samiti
Publication Year
Total Pages303
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, Literature, M000, & M015
File Size15 MB
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