SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 157
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ अध्याय ] सामने रखा पर अद्भुत प्राध्यात्मिक पाकर्षण है। ऐसे सत्पुरुष जब इस प्रकार के पान्दोलनों का संचालन करते है तो उसकी सफलता में तनिक भी संशय नहीं रह जाता। आचार्यश्री तुलसी ने इस आन्दोलन का प्रवर्तन कर मानव-समाज का हित किया है। वे सबके वन्दनीय हैं, पूजनीय हैं, प्रादरणीय हैं। उनके प्राचार्य-काल के इस धवल समारोह के पुण्य अवसर पर मैं भी इन शब्दों के साथ अपनी भाव-भरी धांजलि अर्पित करता है तथा यह कामना करता हूँ कि वे युगों-युगों तक इसी प्रकार मानव-जाति का कल्याण पौर प्राध्यात्मिकता का प्रसार करते रहें ! शत-शत अभिवन्दन ___मुनिश्री मोहनलालजी 'शार्दूल' प्रार्य ! तुम्हारे चरणों में शत-शत अभिवन्दन दीर्घ दृष्टि तुम; इसीलिए यह जगत तुम्हारे पद विन्यासों का करता पाया अभिनन्दन मानव उच्च रहा है सदा तुम्हारी मति में और उसी पर टिका अटल विश्वास तुम्हारा कब माना उसको नृशंस, विषयान्ध, विहित क्योंकि हृदय का स्वच्छ सदा आकाश तुम्हारा बाहर सतत वही लोचन पथ में माता है जो होता है निहित निगोपित अंतरंग में जैसा सलिल पयोनिधि में रहता बहता है वैसा ही उभरा करता चंचल तरंग में तुम मानवता के उन्नायक बने प्रतिक्षण काट-काट कर युग के सब जड़ता मय बन्धन आर्य ! तुम्हारे चरणों में शत-शत अभिवन्दन । प्राण तुम्हारे सदा सत्य के लिए निछावर प्राप्य सत्य से बढ़ कर कोई है न तुम्हारा राग, रोष के सारे तिमिर तिरोहित होते सत्य अचल है विमल विभास्वर वह उजियारा जहाँ असत्य का पोषण होता, दुख ही दुख है इसीलिए बस सत्य-साधना तुम बतलाते आत्मोदय की उस प्रशस्त पद्धति का गौरव अपने मुख से गाते गाते नहीं अघाते ताप शमन का कार्य सहा करते रहते हो मिटा रहे हो प्रतिपल वितथ जनित प्राक्रन्दन मार्य ! तुम्हारे चरणों में शत-शत अभिवन्दन ।
SR No.010719
Book TitleAacharya Shri Tulsi Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Dhaval Samaroh Samiti
PublisherAcharya Tulsi Dhaval Samaroh Samiti
Publication Year
Total Pages303
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, Literature, M000, & M015
File Size15 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy