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________________ अणुव्रत, आचार्यश्री तुलसी और विश्व-शांति श्री मनन्त मिश्र सम्पादक-सग्मार्ग, कलकत्ता नागासाको के खण्डहरों से प्रश्न विश्व के क्षितिज पर इस समय युद्ध और विनाश के बादल मंडरा रहे हैं । अन्तरिक्ष यान और प्राणविक विस्फोटों की गड़गड़ाहट से सम्पूर्ण संसार हिल उठा है । हिंसा, द्वेष और घृणा की भट्टी सर्वत्र सुलग रही है । संसार के विचारशील और शान्तिप्रिय व्यक्ति प्राणविक युद्धों की कल्पना मात्र से आतंक्ति हैं। ब्रिटेन के विख्यात दार्शनिक बट्टैण्ड रमेल आणविक परीक्षण-विस्फोटों पर प्रतिबन्ध लगाने के लिए ८६ वर्ष की आयु में सत्याग्रह कर रहे हैं। प्रशान्त महामागर, सहारा का रेगिस्तान, साइबेरिया का मैदान और अमेरिका का दक्षिणी तट भयंकर अणुबमों के विस्फोट से अभिगंजित हो रहे है। सोवियत रूस ने ५० से १०० मेगानट के अणबमों के विस्फोट की घोषणा की है तो अमेरिका ५०० मेगाटन के बमों के विस्फोट के लिए प्रस्तुत है। सोवियत रूस और अमेरिका द्वारा निर्मित यान सैकड़ों मील ऊँचे अन्तरिक्ष के पर्दे को फाइते हुए चन्द्रलोक तक पहुँचने की तैयारी कर रहे हैं। छोटे-छोटे देशों की स्वतन्त्रता बड़े राष्ट्रों की कृपा पर आश्रित है। ऐसे संकट के समय स्वभावतः यह प्रश्न उठता है कि मंसार में वह कौन-सी ऐसी शक्ति है जो अणुबमों के प्रहार मे विश्व को बचा सकती है। जिन लोगों ने द्वितीय युद्ध के उत्तरार्द्ध में जापान, नागासाकी और हिरोशिमा जैसे शहरों पर अणुबमों का प्रहार होते देखा है, वे उन नगरों के खण्डहरों से यह पूछ सकते हैं कि मनुष्य कितना कर और पैशाचिक होता है। निम्सन्देह मानव की क्रूरता और पैशाचिकता के शमन की क्षमता एकमात्र अहिसा में है । सत्य और अहिंसा में जो शक्ति निहित है, वह अणु और उद्जन बमों में कहाँ ! भारतवर्ष के लोग सत्य और अहिंसा की अमोघ शक्ति से परिचित हैं; क्योंकि इमी देश में तथागत बुद्ध और श्रमण महावीर जैसे अहिंसा-व्रती हा हैं। बुद्ध और महावीर ने जिस सत्य व अहिंसा का उपदेश दिया, उसी का प्रचार महात्मा गांधी ने किया। ब्रिटिश साम्राज्य को समाप्त करने के लिए गांधीजी ने अहिंसा का ही प्रयोग किया था। सत्य और अहिंसा के सहारे गांधीजी ने सदियों से परतन्त्र देश को राजनैतिक स्वतन्त्रता और चेतना का पथ प्रदर्शित किया। अतः भारतवर्ष के लोग अहिंसा की अमोघ शक्ति से परिचित हैं। सत्य, अहिंसा, दया और मंत्री के सहारे जो लड़ाई जीती जा सकती है, वह अणुबमों के सहारे नहीं जीती जा सकती। वर्तमान युग में सत्य, अहिंसा, दया और मैत्री के सन्देश को यदि किसी ने अधिक समझने का यत्न किया है तो निःसंकोच अणुव्रत-आन्दोलन के प्रवर्तक के नाम का उल्लेख किया जा सकता है । अणुबम के मुकाबले प्राचार्यश्री तुलसी का प्रणवत अधिक शक्तिशाली माना जा सकता है । अणुव्रत से केवल बड़ी-बड़ी लड़ाइयाँ ही नहीं जीती जा सकतीं, बल्कि हृदय की दुर्भावनामों पर भी विजय प्राप्त की जा सकती है। युद्ध के कारण का उन्मूलक ___जैन-सम्प्रदाय के प्राचार्यश्री तुलसी का अणुव्रत-आन्दोलन नैतिक पम्युत्थान के लिए किया गया बहुत बड़ा अभियान है। मनुष्य के चरित्र के विकास के लिए इस पान्दोलन का बहुत बड़ा महत्व है। चोरबाजारी, भ्रष्टाचार, हिंसा,
SR No.010719
Book TitleAacharya Shri Tulsi Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Dhaval Samaroh Samiti
PublisherAcharya Tulsi Dhaval Samaroh Samiti
Publication Year
Total Pages303
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, Literature, M000, & M015
File Size15 MB
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