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________________ जैसा मैंने देखा श्री कैलाशप्रकाश, एम० एस-सी० स्वायत्त शासनमंत्री, उत्तर प्रदेश सरकार यूग आये और चले गये। अनेकों उसके काल-प्रवाह में बह गये । उनका अस्तित्व के रूप में नाम-निशान तक नहीं रहा। अस्तित्व उमी का रहता है जो कुछ कर-गुजरता है। व्यक्ति की महानता इसी में है कि वह युग के अनुस्रोत में नहीं बहे, बल्कि मानव-कल्याणकारक कार्य-कलापों से युग के प्रवाह को अपनी ओर मोड़ ले । इस रलगर्भा वसुन्धरा ने समयसमय पर ऐसे नररत्न पंदा किये हैं जो कि युग के अनुस्रोत में नहीं बहे, बल्कि स्व-साधना के साथ-साथ उन्होंने मानव मात्र का कल्याण किया। स्वनामधन्य प्राचार्यश्री तुलसी भी उसी गगन के एक उज्ज्वल नक्षत्र हैं जो कि अपनी साधना में निरत रहते हए भी आज के युग में परिव्याप्त अवांछनीय तत्त्वों का निवारण करने के हेतु मानव-समाज में नैतिकता का उद्घोषण कर रहे हैं। वर्षों के प्रयास के बाद हमें विदेशी दासता से मुक्ति मिली । अपनी मरकार बनी, जनता के प्रतिनिधि शासक बने । यद्यपि हम राजनैतिक दृष्टि से पूर्णरूपेण स्वतन्त्रत हैं, लेकिन अनैतिकता की दासता से मानव-समाज आज भी जकड़ा है; अतएव सही स्वतन्त्रता का प्रानन्द हम तब तक अनुभव नहीं कर सकते, जब नक जन-मानम में अनैतिकताको जगह नैतिकता घर न कर ले, पारस्परिक द्वेष-भावना मिटाकर उसका स्थान मैत्री न ले ले । वास्तव में, हमारे राष्ट्र की नींव तभी मजबूत हो सकती है, जबकि वह नैतिकता पर आधारित हो, वरना वह धूल के टीले की तरह हवा के झोंके मात्र से हिल जायेगी। फिर भी हमारे बीच एक प्राशा की किरण है । जनवन्ध प्राचार्यश्री तुलसी इस दिशा में अभिनव प्रयास कर रहे हैं और जन-जन में प्राध्यात्मिकता का पाञ्चजन्य फूंक रहे हैं। उनके द्वारा प्रवर्तित अणुव्रत-आन्दोलन एक प्रकाश-स्तम्भ है जो मानव के लिए एक दिशा-दर्शन है तथा उसके लिए क्या हेय, ज्ञेय या उपादेय है, यह मार्ग बताता है। वैसे तो 'अणुवत' कोई नवीन वस्तु नहीं। यगों से उनकी चर्चा धर्मशास्त्रों में पाती है। अहिंसा, मन्य, अस्तेय, ब्रह्मचर्य और अपरिग्रह इन पांच महाव्रतों को अनेकों नामों मे अभिहित किया गया है, जिनका उद्देश्य लगभग एक-सा है। परन्तु जहाँ तक अणुव्रत-आन्दोलन का सम्बन्ध है, उनमें एक नवीनता है। इसके नियमोनियम बनाते समय प्राचार्यश्री ने निस्सन्देह बहुत ही दूरदर्शिता मे काम लिया है। जहाँ तक मैं समझा हूँ, उन्होंने प्रमुख रूप से यही प्रयास किया है कि मानव-समाज में बहुलता मे बुराइयाँ व्याप्त हैं, पहले उन्हों पर प्रहार किया जाये। वे यह भी जानते हैं कि आज का मानव आधिभौतिकता की चकाचौंध में चुंधिया गया है, आधारभूत नैतिक मान्यताप्रो के प्रति उसकी श्रद्धा कम होती जा रही है, शास्त्रों में प्रतिपादित सिद्धान्तों का पालन नहीं किया जा रहा है। अतएव इस आन्दोलन के रूप में आपने मानव-समाज को एक व्यावहारिक संहिता दी है, जिस पर प्राचरण कर कम-से-कम वह दूसरो के अधिकारों को न हड़प, अनैतिकता मे दूर रहकर, चरित्रवान् बनने की ओर अग्रसर हो। मेरा अान्दोलन से कुछ सम्बन्ध रहा है। इसके साहित्य को पढ़ा, उस पर मनन किया और इस निषकर्ष पर पहुँचा हूँ कि वास्तव में यह एक आन्दोलन है, जिसमे मानव-कल्याण सम्भव है। इस आन्दोलन की विशेषता यह पाई कि इसके प्रवर्तक प्राचार्यश्री तुलीसी या इसके प्रचारक उनके अन्तेवासी जितना स्वयं करते हैं, उससे कहीं कम करने का उपदेश देते हैं । वास्तव में प्रभाव भी ऐसे.ही पुरुषों का पड़ता है, जो स्वयं साधना-रत हैं और जिनका जीवन त्याग व सपस्या मे मजा है, जिनके जीवन में सात्त्विकता है। प्राचार्यश्री में संयम का तेज है, उनकी वाणी में प्रोज है, मुख-मण्डल
SR No.010719
Book TitleAacharya Shri Tulsi Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Dhaval Samaroh Samiti
PublisherAcharya Tulsi Dhaval Samaroh Samiti
Publication Year
Total Pages303
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, Literature, M000, & M015
File Size15 MB
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