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________________ ( १८१ ) रे हतियारा देव तई, कां हत्यो पुरुप प्रधान । अम्ह अवलानई एवडु, तइ दुखू दीध असमान ॥११॥ पि० उम विलाप करती थकी रे, अंतेउर नइ देखि। केहनइ करुणा न ऊपजई रे, वलि विरही नइ विशेखि ।।१२।। पि० विभीपण मंदोदरी रे, दुखु करंता देखि। रामचन्द्र आवी तिहारे, समझावई सुविशेष ॥१३॥ पि० भावी वात टलइ नहीं रे, वयर हुवइ मरणात । मन ह्टकी ल्यउ आपणउ रे, म करउ सोक अश्रांत ||१४|| रा० प्रेत ऋतूत करो तुम्हे रे, राम कहइ सुविचार । विभीषण सहु को मिली रे, करई रावण संसकार ।।१५।। रा० वावना चंदन आणीया रे, आण्या अगर उदार। चय उपरि पउढाडियो रे, कीयो किसुं करतार ।।१६।। रा० रावण नइ संसकारि नई रे, लखमण राम उदास रे। पहुता पदम सरोवरई रे, द्यइ जल अंजल तास ॥१७॥ रा० इंद्रवाहन कुभकर्ण नइ रे, मुंकाव्या श्रीराम । सोक मुंकउ सुख भोगवउ रे, द्यइ आसानना आम ।।१८॥ रा० ए संसार असार मई रे, कवण न पांमइ दुखु । इम चिंतवता चित्त मई रे, गया मन्दिर मन लुखु ।।१६।। रा० त्रीजी ढाल पूरी थई रे, सातमा खंड नी एह। लमयसुंदर कहई साभलो, वयराग नी वात जेह ॥२०॥ रा० ॥ सर्वगाथा १५३ ॥
SR No.010706
Book TitleSitaram Chaupai
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAgarchand Nahta, Bhanvarlal Nahta
PublisherSadul Rajasthani Research Institute Bikaner
Publication Year1952
Total Pages445
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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