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________________ ( १७६ ) रावण रोस करि कहइ जाण्यो, तई तउ चक्र तणो बल आण्यो ॥४७॥ इम वोलइ तो रावण दीठो, लखमण जाण्यो ए तो धीठो ॥४८|| लखमण चक्ररतन ले मुंकई, ते पणि रावण थकी न चूकइ ॥४६॥ ए चक्र रावण नइ थयो एहवो, पर आसक्त नारी जन जेहवो ॥२०॥ जे तिण करि झाल्यो सुविचारी, तेहिज फिरि नइ थयो क्षयकारी ।।१।। रावण लखमण चक्र प्रहारई, ततखिण ढलि पड्यो धरती तिवारई ।। जाणे प्रबल पवन करि भागो, रावण ताल ज्यु दीसिवा लागो ॥५३॥ जाणे केतु ग्रह ऊपरती, किंवा त्रुटि पड्यो ए धरती ॥५४॥ रावण सोहइ पडियो धरती, जाणे आथमत उ सउ दिनपती ॥५५il रावण पडतउ देखी त्राठा, राक्षस सुभट सहु जायइं नाठा ।।६।। तव सुग्रीव विभीषण भाखई', इम आश्वासन देई राख ॥५॥ तुम्हनइ ए नारायण सरणं, मत को आणो डर भय मरणं ॥५८|| सगलउ रावण कटक नउ मेलो, जई थयो रामचद नइ भेलो ५६ ढाल ए सातमी खंडनी जाणो, बीजी ढालइ मास्यो रावण रांणो ॥६० पामी जयत पताका रामई, इम कहइ समयसुदर इण ठामई ॥६१।। ॥ सर्वगाथा १३३।। ढाल त्रीजी रे रगरत्ता करहला मो, प्रीउ रत्त आणि । हु तो ऊपरि काढिनइ, प्राण करूं कुरवाण ||१|| सुरंगा करहा रे, मो प्रीउ पाछउ वालि, मजीठा करहा रे ए गीतनी ढाल राग मारुती रावणनइ धरती पड्यउ, देखि विभीषण राय । आपघात करतउ थकउ, राख्यो घणे उपाय ॥१॥
SR No.010706
Book TitleSitaram Chaupai
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAgarchand Nahta, Bhanvarlal Nahta
PublisherSadul Rajasthani Research Institute Bikaner
Publication Year1952
Total Pages445
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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