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________________ ( १७८ ) देखी सुभट सहु को हरष्या, ए सही वासुदेव करि परख्या ।।२।। अम्हनई अनन्तवीरिज कह्यो पहिलो, ते पणि वचन थयो सहु वहिलो ए तो वासुदेव बलदेवा, ऊपना सुरनर करिस्यइ सेवा ।। २७ ॥ लखमण हाथि रह्यो चक्र देखी, रावण चितवई चित्त विद्वेपी ।। २८ ।। जेहनइ चक्र रतन हुयइ हाथई, जेहनइ पुण्डरीक छत्र नइ माथई ॥२६|| तेहनी सेव करइ राय राणा, तेहनी आन करइ परमाणा ।। ३० ॥ धिग मुझ विद्या तेज प्रतापा, रावण इण परि करई पछतापा ॥३१॥ मुझनई भूमिगोचर निभ्रंबई, मुझनई लखमण जीपिवा वांछइ ॥३२॥ हाहा ए संसार असारा, बहु विध दुखु तणा भंडारा ॥३३॥ हाहा राज रमणि पणि चंचल, जोवन उलट्यो जाय नदी जल ||३४|| हाहा कडुआ करम विपाका, जेहवा निंब धतूरा आका ॥३॥ धिग धिग काम भोग संयोगा, दुरगति दायक अंति वियोगा ॥३६॥ सोलइ रोग समाकुल देहा, कारिमा कुटुंब संबंध सनेहा ॥३७॥ इम हुँ जाणतो पणि मुरछांणो, पारकी स्त्री हरतो पांतराणो ॥३८॥ हा हा धिग धिग मुज्म जमारो, मई तो निफल गमाड्यो सारो ||३|| इम वइराग चड्यो लंकेसर, विभीषण बोल्यो देखी अवसर ॥४०॥ राजन मांनि अजी मुझ वचनं, सीता पाछी सुपि सुरचनं ॥४१॥ भोगवि राज पडूर लंका नो, मानि वचन ए लाख टंकानो ॥४२|| तो पिण रांवण वात न मानई, किम ही सीता पडई मुझ पानई॥४३ लखमण कहइ भो रावण राणा, तु हिव कां करई खाचाताणा ||४४|| हिव तुंमानि वचन बाधव नो, जो तुपुत्र छइ रतनाव नो ॥४॥ जर तुं जीवत वाछ। अपणउ, तर तुं थारे राक्षस समझयो ||४६।।
SR No.010706
Book TitleSitaram Chaupai
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAgarchand Nahta, Bhanvarlal Nahta
PublisherSadul Rajasthani Research Institute Bikaner
Publication Year1952
Total Pages445
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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