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________________ प्रस्ताविक विविध संग्रह १०७ दुढिया रो कवित-छप्पय आया नै उपदेस, प्रथम प्रतिमा मत पूजौ। . वादौ मत अम्ह विना, दरसणी यति को दूजो । दीजै नहीं बलि दान, भवे बीजे भोगवणा । आगम केइ उथपे, लोह सु जड़ीया लवणा । सीख द्यौ लाख न हुवै समा, खोटी जड रा खुढीया । पारकी निंद करताप्रगट, धरमी किहा थी ढुंढिया ॥ १ ॥ अधिक आदि अनादि री मातवटि उथप, देवपूजा तणा सुस दीधा । देखि अन्याय आचार अंदेस मैं, __ काल नैं चाल जगदीस कीधा ॥ १ ॥ प्यास मरता पसू पखिया पथिया, पाप है पावज्यो मता पाणी । भरमिया भल भला लोक एहै भरम, धरम कियौ तिणें धूल धाणी ॥ २ ॥ गिणइ नहीं शास्त्र वलि मूलगा देवगुरू, लाज विण लोक इण कुमति लागे । ऊबली रीति ऊधा तिके ऊठीया, ऊठिसी ई ए उतपात आगैं ॥ ३ ॥ मेलि परवान मान महाराज कीधा मन्है, __ लोपीयो हुकम करतूत लहसी। हुइ सहुको कहै. हाकमैं हाकमी, रैत वर वैत दुष्ट दूर रहसी ॥ ४ ॥
SR No.010705
Book TitleDharmvarddhan Granthavali
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAgarchand Nahta
PublisherSadul Rajasthani Research Institute Bikaner
Publication Year1950
Total Pages478
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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