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________________ __१०८ धर्मवर्द्धन ग्रन्थावली माकरण ( जवा) छप्पय आचैं केइ अथग्गरा, हलवे हलवे हेर । माकण माडे मामला, मेवासें रा मेर । मेवासे रा मेर, झरे कोचर मे, झाझा । रतिवाहा चराज, प्राछ करि जायइ प्राझा । छलबल करि छेतरै, चूसैं लोही चटकावें । चावा चिहु दिसि चोर, नींद कहो किहाथी आवै ॥१|आवै० सर्वेयो खाट में पाट मे हाट मे त्राट में आसन वासन थिर थानें। आवत जावत भी चटकावत, नावत हाथ छिपै कहुं छाने । रैन मे नैंन मे नींद पर नही, धौंस ही रूस भरै दुख दानें। गउ न राक न को गिनै हाकन, माकण काहु की साक न माने। धरती री धणियाप किसो __ भोगवि किते भू किता भोगवसी, माहरी साहरी करइ मरें । ऐंठी तजि पातला उपरि, कु वर मिलि मिलि कलह करें ।१।। धपटी धरणी केतेइ धुसी, धरि अपणाइत केइ ध्र वै । धोवा तणी शिला परि धोबी, हुं पति हुं पति करै हुवै ।।२।। इण इल किया किता पति आगैं, परतिख किता किता परपूठ । वसूधा प्रगट दोसती वेश्या, झूम भूप भुजग सु झूठ ॥३॥ पातल सिला, वेश्या, पृथ्वी, इण च्यारा री रीति इसी । ममता कर मरै सो मूरख, कहै धर्मसी धणियाप किसी ॥४॥
SR No.010705
Book TitleDharmvarddhan Granthavali
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAgarchand Nahta
PublisherSadul Rajasthani Research Institute Bikaner
Publication Year1950
Total Pages478
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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