SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 185
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ - - १०६ धर्मवर्द्धन ग्रन्थावली पशु पथी पंखिया, आपणी ठामै आवै । आरंभ किया अलग, सको थिर चित्त सुख पावं ।। आकास चंद तारा उदें, दिन चिता अलगी दुरी । सुखकरण संघ धर्मसी सदा, सकति रूप संध्या सुरी ॥२॥ सर्व सघ आशीर्वाद परव अवसर सदा दरव खरचे प्रघल, गरव न करें करइ सरव उपगार । धरवि जलधार जिम दान वरसै धरा, जगतपति संघ रौ करौ जयकार ॥१॥ सूध मन सेव गुरू देव री साचवें, ___ सखर समझ अरथ सूत्र सिद्ध त । दिये बहु दान मन शुद्ध पालइ दया, भलो नित संघ रौ करौ भगवंत ॥ २ ॥ राय - साधार वदिछोडि मोटा विरुद, साह पतिसाह सम मौज महिराण । संघ सुप्रसन हुआ भवे निध संपजै, करौ प्रभु संघ रौ सदा कलियाण ॥ ३ ॥ वरण अढ़ार ने जिकै दिये वरा, खरा द्रव्य खटिन करें धर्म काज । कहै धर्मसीह सुकवि लोक सहि को कहैं, महाजन तणो उदो करें महाराज ॥ ४ ॥
SR No.010705
Book TitleDharmvarddhan Granthavali
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAgarchand Nahta
PublisherSadul Rajasthani Research Institute Bikaner
Publication Year1950
Total Pages478
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy