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________________ ६७ प्रस्ताविक विविध संग्रह मेगल लहै मलीदा मण मण, कीडी उदर भरै ताइ कण कण । जितरौ वरौ जियरें जण जण, पूरे तितो ईस आपण पण ||२|| चूण दियें सहु ने विधि चंगी, हसती गज रंज हीनंगी। अति अदोह धरें मत अंगी, साहिब आस पूरै सरवगी ॥ ३ ॥ ध्रविजै सदा चूरमे धिधंगर, चीटी चख इक चेण लहै चर। धर्मसीह मन चित मता धर, पूरण आस सहु परमेसर ।। ४ ।। सूर्य स्तुति • हुदें लोक जिण रें उदै, मुदै सहु काम? पूजनीका सिरे देव पूजौ । साचरी बात सहु साभलौ सेवका, देव को सूर सम नहीं दूजी ॥ १ ॥ सहस किरणा धरै हर अंधकार सही, नमै प्रहसमै तिया कष्ट नावै । प्रगट परताप परता घणा पूरती, अवर कुण अमर रवि गमर आवै ॥ २ ॥ पडि रहै रात रा पखिया पथिया, हुवै दरसण स को राह हीं । सोम चढे सुरा सुरा असुरा शिहर, मिहर री मिहर सुर कवण मीढ़ें ।। ३ ।। तपे जग ऊपरा जपै सहु को तरणि, . . सुभा अशुभा करम धरम साखी । रूड़ा ग्रह हुवइ सहु रू. ग्रह राजवी, रूडा रजवट प्रगट रीति राखी ॥ ४ ॥
SR No.010705
Book TitleDharmvarddhan Granthavali
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAgarchand Nahta
PublisherSadul Rajasthani Research Institute Bikaner
Publication Year1950
Total Pages478
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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