SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 175
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ धर्मवर्द्धन ग्रन्थावली - धमाल ( वसत वर्णन ) ढाल-कागती सकल सजन सैली मिली हो, खेलण समकित ख्याल । ज्ञान सुगुन गावै गुनी हो, खिमारस सरस खुस्याल ॥१॥ खेलो सत हसत वसंत मे हो, अहो मेरे सजना राग सु फागरमत । खे० ॥२॥ जिनशासन वन माहे मौरी विविध क्रिया वनराय । कुशल कुसम विकसित भये हो, सुजस सुगंध सुहाय । खे०॥३॥ कुहकी शुभमति कोकिला हो, सुगुरु वचन सहकार ।। भइ मालति शुम भावना हो, मुनिवर मधुकर सार । खे० ॥४।। प्रवचन वचन पिचरका वाहै, यार सु प्यार लगाई। शुभ सुण लाल गुलाल की हो, झोरी भरी अतिहि झुकाइ ॥५॥ वर महिमा मादल बजे हो, चतुराइ मुख चग । दया वाणी डफ वाजती हो शोभा तत्व ताल संग । खे०॥l, राग सहित जिनराज आलाप, दौलति सुनिसदीह । सव दिन विजयहर्प सुख साता, धमाल कहै धर्मसीह ॥णा उपदेश अव तो सब सौ वरसा लगि आउसु, तामे तो आध गयौ निसि सूता । चौंस गयो रस रामति रौंस, 'खट गृह धध के धुस मे खता ।।
SR No.010705
Book TitleDharmvarddhan Granthavali
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAgarchand Nahta
PublisherSadul Rajasthani Research Institute Bikaner
Publication Year1950
Total Pages478
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy