SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 173
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ प्रस्ताविक विविध संग्रह सरस्वती स्तुति अगम आगम अरथ उतारै उर सती, वयण अमृत तिके रयण ज्यु बरसती। हुअइ हाजर सदा हेतु आ हरसती, सेविजे देवि जै सरसती सरसती ॥ १॥ विद्या दे सेवका विनौ वाधारती, __ अडवड्या साकडी वार आधारती । इंट नरिंद जसु उतारे आरती __ भणा तुझ नै नमो भारती भारती।। २॥ वेलि विद्या तणी वधारण वारदा, हुआ प्रसन्न सहु पामिजे द्वारदा । प्रसिद्ध सकल कला नीरनिधि पारदा, शुद्ध चित्त सेव नित सारदा सारदा ॥३॥ अधिक धर ध्यान नर अगर उखेवता, व्यास वाल्मीक कालीदास गुण वेवता। सुबुद्धि श्री धर्मसी महाकवि सेवता, ___ दीयह सहु सिद्धि श्रुतदेवता देवता ॥४॥ परमेश्वर सहि सबला निवलां करें संभाला,वलि नहि ईस विसरण वाला। जीव पडें मत बहु जंजाला, प्रभु साचा सहुचा प्रतिपाला ||१||
SR No.010705
Book TitleDharmvarddhan Granthavali
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAgarchand Nahta
PublisherSadul Rajasthani Research Institute Bikaner
Publication Year1950
Total Pages478
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy