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________________ कीर्तिसुन्दर, ज्ञानवा आदि अनेक विद्वान आपके शिष्य थे। इनकी शिष्यपरम्परा १६ वीं शताब्दी तक चालू रही ' ! आपके सम्बन्ध मे भोजक अमराजी का कहा हुआ एक डिंगल गीत इस प्रकार है : वखतवर श्री विजहरप वाचक तणी, ज्ञान गुण गीत सौभाग बड़ गात । घडा वावई तिके गुणा रा धरमसी, पतगड तुने सहि वडा कवि पात ॥१॥ ज्ञानवत सूत्र सिधतरी लहइ गम, अगम रा अरथ जिके तिके आणइ । महु बहोतर कला तो कना धरमसी, जंन सिव धरम रा मरम जाण ॥ २ ॥ व्याकरण वेद पुगण कुराण विधि आप मति सार अधिकार आखइ । ताहरी धरमसी सममि इसड़ी तरह, भरह पिंगल तणा भेद भाखइ ॥३॥ राजि है श्री कमल साईज चढ़ती रती,, जिन सासन जोइतां जती गुण जाण । नग अमूल धरमसी सारिखा नीपजइ, खरतरइ गच्छ हीरां तणी खाण ॥४॥ २ महोपाध्याय धर्मवर्द्धनजी की विस्तृत जीवनी श्री नाहाटाजी के लेख मे द्रष्टव्य है।
SR No.010705
Book TitleDharmvarddhan Granthavali
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAgarchand Nahta
PublisherSadul Rajasthani Research Institute Bikaner
Publication Year1950
Total Pages478
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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