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________________ तत्कालीन बीकानेर नरेश सुजाण सिंहजी ने गच्छनायक श्रीजिनसुखसूरि को दिए गए सं० १७७६ के अपने पत्र में महोपाध्यायजी की इस प्रकार प्रशंसा की है : सब गुण ज्ञान विशेप विराज । कविगण ऊपरि धन ज्यु गाजै ।। धर्मसिंह धरणीतल माहि । पण्डित योग्य प्रणति दल ताहि ।। महोपाध्याय धर्मवर्द्धन अनेक विपयो के ज्ञाता एवं बहुभाषाविद् उच्चकोटि के विद्वान थे। आपकी अनेक रचनाएं सस्कृत मे है। साथ ही प्राकृत-अपभ्रंश आदि प्राचीन भापाओ मे भी रचना करने में आप समर्थ थे। इम सम्बंध में कुछ उदाहरण द्रष्टव्य है : सरस्वती-बंदना (संस्कृत) मंद्र मध्येश्च तारैः क्रमततिभिरुरः कण्ठमूर्द्धप्रचारैः , सप्तस्वा प्रयुक्त सरगमपधनेत्याख्ययाऽन्योन्यमुक्तः। स्कन्धे न्यस्य प्रवालं कल ललितकल कच्छपी वादयती, रम्यास्या सुप्रसन्ना वितरतु वितते भारती भारती मे ।।६।। (सरस्वत्यष्टकम) प्राकृत विविह सुविहि लच्छीवल्सिंताणमेह, सुगुणरयणगेह पत्तसापुण्णरेहं ।
SR No.010705
Book TitleDharmvarddhan Granthavali
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAgarchand Nahta
PublisherSadul Rajasthani Research Institute Bikaner
Publication Year1950
Total Pages478
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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