SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 158
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ - तम्बाकू त्याग सझाय वनस्पति फुलणि वरसात मे, उत्पति जीव अपार । पाणी तम्बाकू नौ जिहा पडरे, सहुनो होइ संहार । तुरत चिलम भरै हाथा सुचोली नै रे, अंधारा में आइ। केइ कीड़ा माखी कथूआ रे, माहि घणा मसलाइ ।८। तुरत जाण नहीं छै तुहिव जीवड़ा रे, प्रकट करै छै पाप । वैर पौतानी ए सह वालिस्य रे, ए दुख सहिस तु 'आप हा तु० तोवाक छै नाम तेहनै रे, तंबाखू वलि तेम । नाम तणौ पिण अरथ भलौ नहीं रे, कहौ पीवे गुण केम ।१०। तु० बजर पीय ते बजर हीयो हुवै रे, वज्र करमी कहिवाय । । बज्रलेप लेपाय ते वली रे, नाम दियौ वज्र न्याय ।११तु० पर न आदर करि नै पावता रे, पापै भरियै रे पिड । आरंभ ते पिण लागै आपने रे, पछइ अनरथ दड 1१२॥ तु० पुन्य सयोगे नर भव पामियौ रे, श्रावक नौ कुलसार। . विसन तम्बाकू नो तुम्है वारज्यौ रे, इण मे पाप अपार ।१३।तु० एसाभलि नै कांइक ओसर रे, जेह हुवै भव्य जीव । धर्मनी सीख धरौं कहै धर्मसी रे, ज्यु सुख लहौरे सढीव ११४/तु० --:०:३:०:
SR No.010705
Book TitleDharmvarddhan Granthavali
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAgarchand Nahta
PublisherSadul Rajasthani Research Institute Bikaner
Publication Year1950
Total Pages478
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy