SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 159
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ रात्रिभोजन सझाय ढाल-केसरीयौ हाली हल खड़े हो कर जौडि कामण कहै हो, कंत भणो सुखकार । भोजन रात्रि नहीं भलो, इण माहे हो इण में दोप अपार । पिउ रात्रिभोजन परिहरौ हो, सहु माहे हो सहु मे ए धर्म सार पि० वलि मन सु हो मन सु जोइ विचार । पिउ ।। १ । आहार मांहे आवता हो, जीव इता दिन ज्यान । कीड़ी तो निरवुद्धि करे, बलि माखी हो माखी वमन विधान । पि० ॥२॥ कोड करें कुलियातड़ो हो, जुअ जलोदर जेह । कांटी फाटो काकरो, तिम वीधै वीधै हो तालुओ तेह पि०॥३। आवी चाल गले अडै हो, साद रहै ग्रहै सोप । जोवी थे निस जीमता, ए तो दीसे हो दीसे परतिख दोष । पि० ।। ४।। पंच महाव्रत पाखती हो, ए छट्ठो व्रत अन ।। पालै जेह भली परे, जगि जाणो हो जांणो ते शुद्ध जैन विकास शिव पिण ते चौमास मे हो, जीमैं नहीं निशि जाण । इण व्रत लाभ घणो अछ, इम अधिकै हो अधिको हिज फल आण । पि०॥६॥
SR No.010705
Book TitleDharmvarddhan Granthavali
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAgarchand Nahta
PublisherSadul Rajasthani Research Institute Bikaner
Publication Year1950
Total Pages478
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy