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________________ ७८ धर्सवर्द्धन ग्रन्थावली इम जाणी भव्य प्राणी आदरो, सीख सुगुल नी रे सार । वि० । इण भव पावइ आणद अति घणा, , कहै धर्मसी सुखकार । वि० । सा०॥६।। --- - तस्वाक त्याग सहाय ढाल-अाज निहेजो दोसै - तुरत चतुर नर तम्बाकू तजी, इण से दोग अनेक । विरती करौं पाछौ मन वालिने, वारू धरिय विवेक ।। तुरत स्वाद नहीं इण माहै सर्वथा, माहै नहीय मिठास । दूपण देखे तो पिण नवि तजे, पडियौ विसन नै पास ।२। तुरत० कुटर एह अछी छकायनौ, सुस करौ मन शुद्ध । पोत पुण्य हुवै तो तुम पियौ, दही घृत साकर दूध ।३। तुरत० होठ विन्हे दात काला हुवं, वलि मुखि भुडी वास । वले तम्बाकू तिम छाती बलै, सोपाय तिम स्वास ।४। तुरत० नइ एठी मुख घालै नविगिणे, काइ जात कुजात । पर नौ थूक तिको मुह मे पड़े, विसन तणी ए बात ५तुरत? ___ढाल (२) कम परिक्षा करण कु वर चल्यो । राहनी। सूक्ष्म पाचे काय संसार में रे. ठावा सगली ठाम । धुझे करिने तेह धुखाइये रे, अधिकी हिंसा छ आम । तुरत०
SR No.010705
Book TitleDharmvarddhan Granthavali
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAgarchand Nahta
PublisherSadul Rajasthani Research Institute Bikaner
Publication Year1950
Total Pages478
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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