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________________ धर्मवद्धन ग्रन्थावली उलमैं नौ तु आप सु ज्यु जोगी जट्टा ।। पाचिस पाप संताप मे ज्यु भोभरि भट्टा । भमसी तुं भव नवा नवा नाचे ज्युनहा । ऐ मंदिर ऐ मालिया ऐ ऊचा अट्टा ।। ३ ।। यवर गयवर हींसता, गौ महिषी थट्टा । लाछ टु लीपी झं वका पहिंग सु घट्टा । मानिक मोति मदड़ा परवाल प्रगट्टा । आइ मिल्या है एकठा जैसा थलवट्टा ॥ १ ॥ लोभे ललचाणा थकी, मत लागि लपट्टा । काल तक सिर उपरै करसी चटपट्टा ।' ले जासी इक पल में ज्यु वाउ छलट्टा । राहगीर सध्या समै सोवे इक हट्टा ॥ ५ ॥ दिन उगो निज कारिजे जाये दहवट्टा । त्युही कुटंव सर्व मिल्यौ मत जाणि उलट्टा । एहिज तो कु काढिसी करि वेस पलट्टा । साथि जलैगे बपड्ड दुइ चार लकुट्टा ॥ ६ ॥ स्वारथ का संसार है विण स्वारथ खट्टा । रोग ही सोग वियोग का सवला संकट्टा । दान दया दिल मे धरो दुख जाइ व्हट्टा । धरम करो कहै धरमसी सुख होड सुलट्टा ॥ ७ ॥ -~-:०:०:
SR No.010705
Book TitleDharmvarddhan Granthavali
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAgarchand Nahta
PublisherSadul Rajasthani Research Institute Bikaner
Publication Year1950
Total Pages478
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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