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________________ वैराग्य निसाणी काया माया कारिमी, चिहुं दिन तणी चट्टकि, इण माहे तु आत्मा, उलझे रखे अटक्कि ॥ १॥ इण माहे तु आतमा उलझे न अटक्कि, पहिली तो पोता तणी, करि शोध घटकी। कूड़ धूड़ री कोथली मद मैल मटकी, झाली मूढे पंडिते, झझेडि झटक्की ॥२॥ जोध विरोध वृथा करै, कन्है काल कटकी, मान मछर मन जाणि मत, मृति नैण मटकी। . ठग माया झूठी ठटें खल रूप खटक्की, फोगट जाइस फु कि तुस जाइ फटकी ।। ३ ।। एकणि लोभै आवता छए जाय छटकी, धरम सरम हित धीरता गुण ज्ञान गटकी । मन मातै मृग ड्यु भमै, व्रग साथि वटक्की, पर निंदा क्षेत्रे प. हिव राखि हटकी ॥४॥ नाच्यो वेसे नव नवे धरि रीति नटक्की, पुण्य नर भव पामियो भवे भव भटक्की। सुगुरू वचन सहकार री लुलि लुवि लटक्की, . इण विलग्या सुख फल अवल त्रुटे न टक्की ॥५॥
SR No.010705
Book TitleDharmvarddhan Granthavali
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAgarchand Nahta
PublisherSadul Rajasthani Research Institute Bikaner
Publication Year1950
Total Pages478
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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