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________________ सवासो सीख कीजे नहीं पग पग कचाट, अणहुँतौ उपजे ऊचाट । माहिला सु न हुजे मन मठुइ, हाणि न कीजे अपणे हळु ॥३२॥ टेढ़ा न हुजे जंगी टट्ट, ललचाये मत थाए लट्ट । पडित मूरख कीजै परिखा, सगला ने मत कहिजे सरखा ॥३३॥ न कहें फिर फिर अपणो नाम, ठिक सु बेसे देखी ठांम। सुब नो नाम न लेइ सवारौ, कोई हुसी अणहुँतौ कारो॥३४॥ वरजे पर ही वेट वेगार, आप वसे जिहा है अधिकार । दुटपी वात कहै दरबार, सहु नौ समझीजैं तत सार ॥३१॥ सीख सवासो (१२५) कही समझाय, साचवता सहुनै सुखदाय । थिर नित विजयहर्ष जस थाय, इस कहै श्रीधर्मसी उवमाय ।।३।। गुरू शिक्षा कथन निसाणी इण संसार समुद्र को ताक पेलो तट्ट । सुगुरू कहे सुण प्राणीयां तु धरिजै धर्म वट्ट ।। १ ॥ सुगुरू कहै सुणप्राणिया, धरिजै धर्म वट्टा । पूरव पुण्य ' प्रमाण तें मानव भव खदा।। हिव अहिलौ हारे मता, भाजे भव भट्टा । लालच मे लागै रखै, करि कूड कपट्टा ॥ २॥
SR No.010705
Book TitleDharmvarddhan Granthavali
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAgarchand Nahta
PublisherSadul Rajasthani Research Institute Bikaner
Publication Year1950
Total Pages478
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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