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________________ ६४ * चौबीस तीर्थङ्कर पुराण * - तब उन्होंने अपनी दिव्य ध्वनिके द्वारा सबको धर्मोपदेश दिया, जिससे प्रभावित होकर लोग आत्म धर्म में पुनः दृढ़ हो गये। अजित केवलीने देश विदेश में घूमकर धर्मका खूब प्रचार किया था। ___उनके सिंहसेन आदि नव्वे गणधर थे, तीन हजार सात सौ पचास पूर्वधारो, इक्कीस हजार छह सौ शिक्षक, नौ हजार चार सौ अवधि ज्ञानी, बीस हजार केवलज्ञानी, बीस हजार चार सौ विक्रिया ऋद्धिवाले, बारह हजार चार सौ पचास मनः पर्यय ज्ञानी और बारह हजार चार सौ अनुत्तर वादी थे। इस तरह सब मिलाकर एक लाख तपस्वी थे। प्रकुन्जा आदि तीन लाख वीस हजार आर्यिकाएं तीन लाख श्रावक, पांच लाख श्राविकाएं और असंख्य देव देवियां थीं और संख्यात तिथंच थे। समवसरण भूमिमें वे हमेशा आठ प्राति हार्यासे युक्त रहते थे। अन्तमें जब उनकी आयु एक माहकी शेष रह गयी तब वे श्रीसम्मेदशिखर पर पहुंचे और वहां एक माहका योग धारण कर मौन पूर्वक खड़े हो गये । उस समय उन्होंने प्रति समय शुक्ल ध्यानके प्रतापसे कर्मोकी असंख्यात गुणी निर्जरा की, दण्ड, प्रतर आदि समुद्धातसे अन्य कर्माकी स्थिति बराबर की और फिर अन्तिम व्युपरत किया निवर्ति शुक्ल ध्यानसे समस्त अघातिया कर्मोका क्षय कर चैत्र शुक्ल पंचमीके दिन रोहिणी नक्षत्रके उदयमें प्रातःकालके समय मुक्ति धामको प्राप्त किया। वे हमेशाके लिये सुखी स्वतंत्र हो गये। भगवान अजितनाथकी कुल आयु ७२ बहत्तर लाख पूर्वकी थी और शरीर की ऊंचाई चार सौ पचास धनुषकी थी। इनके समयमें सगर नामका द्वितीय चक्रवर्ती हुआ था। उसने भी आदि चक्रधर भरतकी तरह भरतक्षेत्रके छह खण्डोंका विजय किया था। अप्रासंगिक होनेसे यहां उसका विशेष चरित्र नहीं लिखा गया है। भगवान अजितनाथके हाथीके चिन्ह था। . - D
SR No.010703
Book TitleChobisi Puran
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPannalal Jain
PublisherDulichand Parivar
Publication Year1995
Total Pages435
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size27 MB
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