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________________ * चौवीस तीर्थकर पुराण * - - - मिला । वे 'सुप्रभा' नामक पालकीपर सवार हो गये। पालकीको मनुष्य, विद्याधर और देवलोग क्रम कमसे अयोध्याके सहेतुक वनमें ले गये। वहां वे सप्तपर्ण वृक्षके नीचे एक सुन्दर शिलापर पालकोसे उतरे। जिस शिलापर वे उतरे थे उसपर देवांगनाओंने रत्नोंके चूर्णसे कई तरहके चौक पूरे थे । सप्तपर्ण वृक्षके नीचे विराजमान द्वितीय जिनेन्द्र अजितनाथने पहले सबकी ओर विरक्त दृष्टिसे देखकर दीक्षित होनेके लिये मम्मति ली। फिर पूर्वकी ओर मुंहकर "ओ नमः सिद्धेभ्यः" कहते हुए वस्त्राभपण उतार कर फेंक दिये और पञ्च मुष्ठियोंसे केश उखाड़ डाले। इन्द्रने केशोंको उठा कर रत्नोंके पिटारेमें रख लिया और उत्सव समाप्त होनेके बाद क्षीर सागरमें क्षेप आया। दीक्षा लेते समय उन्होंने षष्ठोपवास धारण किया था। जिस दिन भगवान् अजितनाथने दीक्षा धारण की थी उस दिन माघ मासके शुक्ल पक्षकी नवमी थी और रोहिणी नक्षत्रका उदय था । दीक्षा सायंकालके समय ली थी। उनके साथ में एक हजार राजाओंने दीक्षा धारण की थी। उस समय भगवान् अजितकी विशुद्धता इतनी अधिक बढ़ गई थी कि उन्हें दीक्षा लेते समय ही मनःपर्यय ज्ञान प्राप्त हो गया था। ___जव प्रथमयोग समाप्त हुआ तव चे आहारके लिये अयोध्यापुरीमें आये वहां ब्रह्मानामक श्रेष्ठीने उन्हें उत्तम आहार दिया जिससे उसके घरपर देवोंने पञ्चाश्चर्य प्रकट किये। अजितनाथजी आहार लेकर चुपचाप वनको चले गये और वहां आत्म ध्यानमें लीन हो गये। योग पूरा होनेपर वे आहारके लिये नगरों में जाते और आहार लेकर पुनः वनमें लौट आते थे। इस तरह बारह वर्षतक उन्होंने कठिन तपरयाएं की जिनके फलस्वरूप उन्हें पौषमासके शुक्ल पक्षकी एकादशीके दिन सायंकालके समय रोहिणी नक्षत्रके उदयमें केवल ज्ञान प्राप्त हो गया । अब भगवान् अजित अपने दिव्य ज्ञान-केवल ज्ञानसे तीनों लोकोंके सब चराचर पदार्थोको एक साथ जानने लगे। देवोंने आकर ज्ञान कल्याणक उत्सव मनाया । इन्द्रकी आज्ञा पाकर धनपति कुवेरने विशाल समवसरणको रचना की। उसमें गन्धकुटीके मध्य भागमें अजित भगवान् विराजमान हुए। जब वह सभा देव मनुष्य तिर्यंच आदिसे खचाखच भर गई बा momsan Heas
SR No.010703
Book TitleChobisi Puran
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPannalal Jain
PublisherDulichand Parivar
Publication Year1995
Total Pages435
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size27 MB
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