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________________ * चौबीस तीर्थङ्कर पुराण * । हमारे अमोध शाशन को नहीं मानता उनका शासन यह चकूरत्न करता है। बस' जब दूत संदेश सुनाकर चर हो रहा तव कुमार बाहुवली मुस्कराते हुए बोले-'ठीक' तुम्हारे राज राजेश्वर बहुत ही बुद्धिमान मालूम होते हैं । उन्होंने अपने संदेशमें कुछ कुछ साम और दाम और विशेषकर भेद-दण्डका कैसा अनुपम समन्वय कर दिखाया है ? कहते कहते बाहुबलीकी गंभीरता उत्तरोत्तर बढ़ती गई। उन्होंने गंभीर स्वरमें कहा-तुम्हारा राजा भरत बहुत मायावो मालूम होता है। उसके मनमें कुछ और है और संदेश कुछ और ही भेज रहा है। यदि दिग्विजई भरत सचमुचमें सुर विजयी है तो फिर दर्भ कुशाके आसनपर बेठकर उनको अराधना कमें करता था? इसी तरह यदि उसकी सेना अजेय थी तो वह म्लेच्छोंके समरमें लगातार सात दिन तक क्यों तकलीफ उठाती रही ? पूज्य पिताजीने मुझमें और उसमें समान रूपसे राजा पदका प्रयोग था फिर उसके साथ 'राजराजेश्वर' का प्रयोग कैसा ? सचमुच तुम्हारा राजा चकी है, कुम्हार है उसे चकू घुमानेका खूब अभ्यास है इसी लिए वह अनेक पार्थिव घड़े बनाता रहता है, चक ही उसके जीवनका साधन है । उससे जाकर कह दो 'यदि तुम अरि चकूका संहार करोगे तो जीवन-जल-आयुसे हाथ धोना पड़ेगा।' भरतके अन्तिम सन्देशका उत्तर देते समय बाहुबलीके ओंठ कांपने लगे थे, आंखें लाल हो गई थी, उन्होंने दूतसे कहा 'जाओ, तुम्हारा भरत संग्रामस्थालमें मेरे सामने ताण्डव नृत्य रचकर अपना भरत-नट नाम सार्थक करे । मैं किसी तरह उसकी सेवा स्वीकार नहीं कर सकता" उक्त उत्तरके साथ बाहुबलीने दूतको विदा किया और युद्धके लिए सेना तैयार की। इधर दूतने आकर जब भरतसे ज्यों के त्यों सय समाचार कह सुनाये तब वे भी युद्धके लिये सेना लेकर पोदनपुर पहुंचे। वह भाई भईको लड़ाई किसीको अच्छी नहीं लगी। दोनोंके बुद्धिमान मन्त्रियोंने दोनोंको लड़नेसे रोका, पर राज्य लिप्सा और अभिमानसे भरे हुए उनके हृदय में किसीके भी बचन स्थान न पा सके। अगत्या दोनों ओरके मन्त्रियोंने सलाह कर भरत और बाहुबलीसे निवेदन किया कि इस युद्ध में सेनाका व्यर्थ ही संहार होगा इसलिए आप दोनों महाशय स्वयं युद्ध करें,सैनिक लोग चुप चापतमाशा देखें। आप भी सबसे -
SR No.010703
Book TitleChobisi Puran
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPannalal Jain
PublisherDulichand Parivar
Publication Year1995
Total Pages435
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size27 MB
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