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________________ ४४ * चौबीस तीर्थङ्कर पुराण * और धीरे धीरे निन्यानवे हजार योजन ऊंचे जाकर मेरु पर्वतपर पहुंच गई। मेरु पर्वतकी शिखर पर जो पाण्डुक वन है उसमें देव सेनाको ठहराकर देवराज इन्द्र उस वनके ईशानकी ओर गया। वहां उसकी दृष्टि पाण्डुक शिला पर पड़ी। वह शिला स्फटिक मणियोंसे बनी हुई थी, देखनेमें अर्ध चन्द्र सी मालूम होती थी, पचास योजन चौड़ी सौ योजन लम्बी और आठ योजन ऊंची थी। उसके बीच भागमें एक रत्न खचित सोनेका सिंहासन रक्खा था और उस सिंहासनके दोनों ओर दो सिंहासन और रक्खे हुये थे। इन्द्रने वहांपर वस्त्रांग जातिके कल्प वृक्षोंसे प्राप्त हुये वस्त्रोंसे एक सुन्दर मण्डप तैयार करवाकर उसे अनेक तरहके रत्न और चित्रोंसे सजवाया था। इसके अनन्तर इन्द्रने जिन बालकको ऐरावत हाथीके गण्डस्थलसे उतारकर बीचके सिंहासन पर विराजमान कर दिया तथा बगल में दोनों आसनोंपर सौधर्म और ऐशान स्वर्गके ईन्द्र बैठे। इन दोनों इन्द्रोंके समीपसे लेकर क्षीर समुद्र तक देवोंकी दो पंक्तियां बनी हुई थीं जो वहांसे भरे जलसे कलश हाथों हाथ इन्द्रोंके पास पहुंचा रही थीं। दोनों इन्द्रोंने विक्रियासे हजार हजार हाथ बना लिये थे इसलिये उन्होंने एक साथ हजार कलशे लेकर बालकका अभिषेक किया। जिन बालकमें जन्मसे ही अतुल्य बल था इसलिये वे उस विशाल जल धारासे रंच मात्र भी व्याकुल नहीं हुये थे । यदि वह धारा किसी वज्रमय पर्वतपर पड़ती तो वह खण्ड खण्ड हो जाता पर वह प्रचण्ड जल धारा जिनेन्द्र बालकपर फूलोंकी कलीसे भी लघु मालूम होती थी। जब अभिषेकका कार्य पूरा हो गया तब इन्द्राणीने उत्तम वस्त्रसे शरीर पोंछकर उन्हें तरह तरहके आभूषण पहिनाये। देवराजने मनोहर शब्द और अर्थसे भरे हुये अनेक स्तोत्रोंके द्वारा उनकी खूब स्तुति की। भक्तिसे भरी हुई देव नर्तकियोंने सुन्दर अभिनय नृत्य किया और समस्त देवोंने उनका जन्म कल्याणक देखकर अपनी देव पर्यायको सफल समझा था। 'ये वालकवृष-धर्मसे शोभायमान हैं। ऐसा सोचकर इन्द्रने उनका वृषभनाथ नाम रक्खा । इस तरह इन्द्र आदि देव मंडल मेरु पर्वत पर अभिषेक महोत्सव समाप्त कर पुनः अयोध्याको वापिस आये और वहां उन्हों ने जिन बालकको माताकी गोदमें देकर अभिषेक विधिके सब समाचार कह सुनाये।
SR No.010703
Book TitleChobisi Puran
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPannalal Jain
PublisherDulichand Parivar
Publication Year1995
Total Pages435
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size27 MB
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