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________________ * चौबीस तीथर पुराण * ४३ । - साथ ऐरावत हाथीपर बैठकर समस्त देव सेनाओंके साथ साथ अयोध्यापुरी की ओर चला। रास्ते में अनेक सुर नर्तकियां अभिनय करती जाती थीं। सरस्वती वीणा बजाती थी, गन्धर्व गाते थे और भरताचार्य नृत्यकी व्यवस्था करते जाते थे। उस समय परस्परके आघातसे टूट टूटकर नीचे गिरते हुए माला मणि ऐसे मालूम पड़ते थे मानो ऐरावत आदि हाथियों के पादसंचारसे चूर्ण हुए नक्षत्रोंके टुकड़े ही हों। धीरे २ वह देवं सेना आकाशसे नीचे उतरी और अयोध्यापुरीकी तीन प्रदक्षिणाएं देकर उसे चारों ओरसे घेरकर आकाशमें ही स्थित हो गई। इन्द्र इन्द्राणी आदि कुछ प्रमुख जन नाभिराजके भवन पर पहुंचे और तीन प्रदक्षिणाएं देकर उसके भीतर प्रविष्ट हुए। वहाँ राजमन्दिरकी अनूठी शोभा देखकर इन्द्र बहुत ही हर्षित हुआ। जिन बालकको लानेके लिये इन्द्रने इन्द्राणीको प्रसूति गृहमें भेजा और स्वयं अंगण में खड़ा रहा। वहां जब उसकी दृष्टि माताके पास शयन करते हुए जिन चालकपर पड़ी तब उसका हृदय आनन्दसे भर गया। इन्द्राणीने उन्हें भक्ति पूर्वक नमस्कार किया और फिर वह मरु देवीको मायामयी नींदसे अचेतकर उसके समीप में एक माया निर्मित बालक सुलाकर जिन बालकको बाहर ले आई। उस समय उनके आगे दिक्कुमारी देवियां अष्ट मंगल लिये हुए चल रही थीं, कोई जय जय शब्द कर रही थीं और कोई मनोहर मंगल गीत गा रही थीं। इन्द्राणीने ले जाकर जिन बालक इन्द्रके लिये सौंप दिया। कहते हैं कि इन्द्र दो आंखोसे बालकका सौंदर्य देखकर सन्तुष्ट नहीं हुआ था इसलिए उसने उसी समय विक्रियासे हजार आंखें बना ली थीं पर कौन कह सकता है कि वह हजार आंखोंसे भी उन्हें देखकर संतुष्ट हुआ होगा ? उस समय देव सेनामें जय जय कार शब्दके सिवाय और कोई शब्द सुनाई नहीं पड़ता था। सौधर्म इन्द्रने उन्हें ऐरावत हाथीपर बैठाया और स्वयं अपने हाथों वा गोदसे साधे रहा । उस समय बालक वृषभनाथके सिरपर ऐशान स्वर्गका इन्द्र धवल छत्र लगाये हुए था सनत्कुमार और माहेन्द्र स्वर्गके इन्द्र दोनों चमर ढोर रहे थे तथा अवशिष्ट इन्द्र और देव जय जय शब्दका उच्चारण कर रहे थे। इसके अनन्तर वह विशाल सेना आकाश मार्गसे मेरु पर्वतकी ओर चली । -
SR No.010703
Book TitleChobisi Puran
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPannalal Jain
PublisherDulichand Parivar
Publication Year1995
Total Pages435
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size27 MB
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