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________________ *'चौबीस तीर्थङ्कर पुराण * जिससे उनके माता पिता आदि परिवारके लोग बहुत ही प्रसन्न हुए। उसी समय इन्द्रने आनन्दोद्यत नामका नाटक किया था जिसमें उसने अपनी अनूठी नृत्य कलाके द्वारा समस्त दर्शकों के चित्तको मोहित कर लिया था। फिर विक्रियासे भगवान वृषभदेवके महाबल आदि दश पूर्व भवों का दृश्य परिचय कराया था । महाराज नाभिराजने भी दिल खोलकर पुत्रोत्पत्तिके उपलक्ष्य में अनेक उत्सव किये थे। उस समय अयोध्यापुरीकी शोभा सजावटके सामने कुवेरकी अलकापुरी और इन्द्रकी अमरावती बहुत कुछ फीकी मालूम होती थी। जन्माभिषेकका महोत्सव पूरा कर देव और देवेन्द्र अपने अपने स्थानों पर चले गये । जाते समय इन्द्र भगवानके लालन पालनमें चतुर कुछ देव कुमार और देव कुमारियों को नाभिराजके भवन पर छोड़ गया था। वे देव कुमार विक्रियासे अनेक रूप बनाकर भगवानका मनोरञ्जन करते थे और देव कुमारियां तरह-तरहके उत्तम पदार्थोसे उनका लालन पालन करती थीं। कहते हैं कि इन्द्रने भगवानके हाथके अंगूठेमें अमृत छोड़ दिया था जिसे चूस-चसकर वे बड़े हुये थे उन्हें माताके दूध पीनेकी आवश्यकता नहीं हुई थी। बाल भगवान अपनी लीलाओंसे सभीका मन हर्षित करते थे। ऐसा कौन होगा उस समय ? जो बालककी मन्द मुसकान, तोतली बोली और मनोहर चेष्टाओंसे प्रमुदित न हो जाता हो। उन्हें जन्मसे ही मतिश्रत और अवधि ज्ञान था। उनकी बुद्धि इतनी प्रखर थी कि उन्हें किसी गुरुसे विद्या सीखनेकी आवश्यकता नहीं पड़ी। वे अपने आप ही समस्त विद्याओं और कलाओंमें कुशल हो गये थे । उनके अद्भुत पाण्डित्यके सामने अच्छे अच्छे विद्वानोंको अभिमान छोड़ देना पड़ता था। वे कभी विद्वान् मित्रोंके साथ कोमल कान्त पदावलीके द्वारा कविताकीरचना करते थे। कभी अलंकार शास्त्रकी चर्चा करते थे, कभी तरह तरहकी पहे. लियोंके द्वारा मन बहलाया करते थे, कभी न्याय शास्त्रकी चर्चासे अभिमानी वादियों का मान दूर करते थे, कभी सुन्दर संगीत सुधाका पान करते थे, कभी मयूर, तोता, हंस, सारस आदि पक्षियोंकी मनोहर चेष्टायें देख देख .प्रसन्न । होते थे, कभी आए हुये प्रजा जनसे मधुर बार्तालाप करते थे, कभी. .
SR No.010703
Book TitleChobisi Puran
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPannalal Jain
PublisherDulichand Parivar
Publication Year1995
Total Pages435
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size27 MB
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