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________________ ३४ फूलोका गुच्छा। ___ कुछ समय पीछे मधुस्रवाने कहा, “इस तरहसे बलकी परीक्षा करना अन्याय होगा । क्योंकि एक तो जन्मभरसे शस्त्र चलानेकी शिक्षा पाया हुआ शस्त्रोपजीवी सेनापति है और दूसरा शस्त्रविद्यासे सर्वथा अपरिचित कवि है। इस प्रकारके असम युद्ध में बलकी अपेक्षा कौशल या चालाकीकी ही जीत होनेकी अधिक संभावना है । इसके सिवा शस्त्रयुद्ध में किसी एकके हत या आहत होनेका भी डर है और यह हमें अभीष्ट नहीं ।" यह सुनकर बलाहकने मधुस्रवाकी ओर भर्त्सनासूचक दृष्टि से देखा। राजाने कहा, “ अच्छा तो बाहुयुद्ध होना चाहिए।" परन्तु मधुस्रवाने इसे भी ठीक न समझा। अन्तमें यह निश्चय हुआ कि "कौन कितना बोझा उठा सकता है, यह देखकर बलकी जाँच की जाय ।" (३) ___ शरत्कालके सूर्यकी सुनहली किरणोंसे अभी सभाका आँगन अच्छी तरहसे व्याप्त न हुआ था कि सभाभवन जनसमूहसे खचाखच भर गया । वैतालिकने महाराजके आगमनकी घोषणा की । क्षेमश्रीने प्रतिदिनकी नाई महाराजकी अभ्यर्थना करके एक गाना गाया; परन्तु आजका गाना बहुत ही संक्षिप्त और बहुत ही करुणापूर्ण था । नौबत बजने लगी । राजाकी आज्ञासे परीक्षा प्रारम्भ हुई। बलाहक बड़े बड़े वजनदार पदार्थोंको उठाने लगा । एक दूसरेसे अधिक अधिक वजनदार पदार्थ उसके सामने लाये जाने लगे और वह उन्हें ऊपर उठा उठाकर फैंकने लगा। अन्तमें एक बड़ी शिलाको वह अपनी छातीकी ऊंचाईतक ले गया-इससे आगे उसकी शक्तिने जवाब दे दिया। __ अब क्षेमश्रीकी बारी आई । उसका सदा प्रफुल्लित रहनेवाला मुख आज शरत्कालके प्रभातके समान गंभीर सौन्दर्यसे परिपूर्ण था। जब वह बोझा उठानेके लिए आगे आया, तब सैकड़ों हजारों नेत्र उस असमर्थके ऊपर करुणा और कल्याण-कामनाकी वृष्टि करने लगे । क्षेमश्रीने एक बार समुद्रकी स्तब्ध और गंभीर मूर्तिकी ओर देखा, एक बार विशाखाकी ओर दृष्टि डाली, एक बार मुञ्जकेशपर्वतकी ओर निरीक्षण किया, एक बार एलालतावेष्टित चन्दनवृक्षोंकी श्रेणीकी ओर निहारा-और अन्तमें मधुस्रवाकी ओर कई बार देखकर वह अपने आपको भूल गया। इसके बाद ही उसने पैरोंके पास
SR No.010681
Book TitleFulo ka Guccha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNathuram Premi
PublisherHindi Granthratna Karyalaya
Publication Year1918
Total Pages112
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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