SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 40
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ मधुस्रवा। पड़ी हुई उस भारी शिलाको दोनों हाथोंसे उठाकर मस्तकके ऊपर स्थिर कर दिया! .क्षेमश्रीकी जीतसे सभामें हर्षका कोलाहल मच गया। सभाजनोंकी दृष्टिकी चोटोंसे बलाहकको अपनी हार हजार गुणी असह्य मालूम होने लगी। लज्जासे उसके मुँहपर पसीना आ गया, रंग उड़ गया, आँखें नीची हो गई । राजाने कहा, "शाबास ! क्षेमश्री शाबास ! तुम्हारे प्रेमकी जीत हुई है । इस भारी वजनको अब ऊपर उठाये रहनेकी जरूरत नहीं है, इसे फेंक दो।" जयसे उल्लसित हुए कविके कानों में राजाके उक्त वचनोंने प्रवेश नहीं किया । वह मधुस्रवाकी ओर एकटक दृष्टिसे देखता हुआ उस भारी वजनको ज्योंका त्यों ऊपर उठायेहुए स्तंभके समान निश्चल हो रहा । लोग चारों ओरसे कहने लगे, "फेंक दो, फेंक दो, शिलाको फेंक दो।" परन्तु कवि ज्योंका त्यों अचल रहा । उसके मुँह पर हँसी विराजमान थी, और आँखें उसकी मधुस्रवाके मुँह पर गड़ रही थीं। मधुस्रवा बोली, “कविके हाथसे शिलाको थामकर उतार लो।" यह सुनते ही कई लोगोंने शिलाको पकड़कर कविके हाथोंमेंसे खींचा। खींचते ही क्षेमश्रीका प्राणहीन शरीर पत्थरकी मूर्तिके समान पृथ्वी पर गिर पड़ा ! विजयोन्मत्त कविके इस प्रकार एकाएक प्राणहीन होजानेसे राजसभाके आनन्दकोलाहलके ऊपर मरणका एक अतिशय करुणाप्रद परदा पड़ गया। इधर मधुस्रवा भी अपने विजयी स्वामीकी इस महिमामय मृत्युसे हर्ष और शोकके मारे मूछित होकर शान्तिलाभ करने लगी। विचित्र स्वयंवर । लगभग तेरहसौ वर्ष पहलेकी बात है । अङ्गदेशमें सत्यसेन नामका राजा राज्य करता था। यह राजा अन्ध्र वंशका था । इसके पूर्वपुरुषोंने दक्षिणसे आकर अङ्गदेशमें राज्य स्थापित किया था। सत्यसेनने चम्पा नगरीमें राजधानी स्थापित करके अपने राज्यको उत्तरमें मिथिला तथा मत्स्यदेश
SR No.010681
Book TitleFulo ka Guccha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNathuram Premi
PublisherHindi Granthratna Karyalaya
Publication Year1918
Total Pages112
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy