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________________ मधुस्त्रवा। ३३ आपकी आज्ञाका पालन कर रहा हूं, आज उसके पुरस्कार देनेका दिन है।" क्षेमश्रीने हाथ जोड़कर कांपते हुए कण्ठसे डरते डरते कहा, “महाराज, मैंने अपनी छोटीसी शक्तिके अनुसार जीवनभर आपकी सेवा की है आज उसका स्मरण करके प्रसाद देनेकी कृपा कीजिए।" __ राजाको दोनों ही प्यारे हैं। क्षेमश्रीने केवल प्रीति दी है, परन्तु बलाहकने धन और प्राणोंकी रक्षा की है। उन्होंने संशय मिटाने और कर्तव्यनिर्णयकी आशासे मधुस्रवाकी ओर देखा । परन्तु वह दोनोंका ही प्रेमदृष्टिसे अभिनन्दन कर रही है, यह देखकर राजाने कहा, “धरणी और रमणीको वही पा सकता है, जो वीर हो। अतएव तुम दोनोंके बलकी परीक्षा होनी चाहिए।" बलाहकका मुख आशासे खिल उठा और छाती फूल उठी। उसकी ओर देखकर मधुस्रवा कुछ मुसकराई; परन्तु ज्यों ही उसने क्षेमश्रीके मलिन मुखकी ओर देखा; त्यों ही वह मुसकराहट फीकी पड़ गई। क्षेमश्रीने कहा, “ महाराज, कवि प्रेम-सौन्दर्य के उपासक होते हैं और रमणी प्रेम चाहती है; अतएव हमारा प्रेम कितना गहरा है, इसकी परीक्षा होनी चाहिए ।" मधुस्रवाके मधुर दृष्टिपातसे क्षेमश्रीका सुन्दर मुख विकसित होगया; बलाहक व्याकुल होकर राजाके मुँहकी ओर देखने लगा। महाराज बोले, “बलहीन जब स्वयं अपनी ही रक्षा नहीं कर सकता, तब मेरे राज्यकी और कन्याकी कौन रक्षा करेगा ? " बलाहकने म्यानसे तलवार निकाल ली और मधुस्रवाके स्मितमधुर मुँहकी ओर देखा। क्षेमश्री गाने लगा। उसका अभिप्राय यह था “प्रेमसे शत्रुओंको जीतूंगा और प्रेमके बलसे बली होऊँगा। विरोधविक्षुब्ध राज्य पानेकी अपेक्षा तो विरोधरहित वृक्षके नीचे निवास करना अच्छा है।" इस तरह जब एक अपने पक्षका समर्थन करके मधुस्रवाकी सदयदृष्टिका सौभाग्य प्राप्त करता था, तब वह प्रफुल्लित और दूसरा उदास हो जाता था । अन्तमें राजाने कहा, “तुम दोनोंमें जो बलवान् होगा, वही मेरी कन्याको प्राप्त कर सकेगा।" बलाहकने अपने सौभाग्यसे गर्वित होकर क्षेमश्रीकी ओर तुच्छ दृष्टिसे देखा । क्षेमश्रीने विनीत स्वरसे कहा, "अच्छा तो बल-परीक्षा ही होने दीजिए।" तब घमंडी बलाहकने तलवार लेकर क्षेमश्रीको सामने आनेके लिए ललकारा। क्षेमधीकी व्याकुल दृष्टि मधुस्रवाके नेत्रों पर जाकर ठहर गई। फू. गु. ३
SR No.010681
Book TitleFulo ka Guccha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNathuram Premi
PublisherHindi Granthratna Karyalaya
Publication Year1918
Total Pages112
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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