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________________ शिष्यकी परीक्षा। १०३ उसकी गर्दन पर पड़ना ही चाहती थी कि उसके कई मित्रोंने वहाँ पहुँचकर उसे बीचहीमें रोक लिया और मारनेवालेको उसी समय कैद कर लिया । मारनेवाला 'आराद' नामका एक क्षत्रिय था । राजाने पूछा-"आराद, तुम किस कारणसे मेरा खून करना चाहते थे?" उसने उत्तर दिया-"इसलिए कि तू राज्यका सत्यनाश करनेवाला है । तेरा वर्ताव यहाँके पूर्व राजाओंसे बिलकुल उलटा है । तू जितनी सुधारणायें करता है, वे सब परिणाममें राज्यका नाश करनेवाली हैं।" जैत्रसिंहने विचार किया कि अपराधी अज्ञानी जान पड़ता है, इसलिए इसे छोड़ देना चाहिए और अपने सेवकोंसे कहा-“यद्यपि इस मनुष्यने मेरे वध करनेका प्रयत्न किया था; परन्तु इसका उद्देश्य अच्छा है । इस लिए इसको बंधमुक्त कर दो और मेरे पास इसे अकेला छोड़कर तुम सब बाहर चले जाओ।” सेवक आश्चर्यचकित होकर बाहर चले गये । राजाके साहसके विषयमें उन्हें उस समय कुछ भय हुआ। आराद लापरवाहीसे राजाकी ओर देखने लगा; परन्तु राजाने उसकी मुखमुद्रा पर कुछ भी ध्यान न दिया। आरादने देखा कि राजाके मुखपर दया, धिक्कार अथवा विजयकी छाया भी नहीं है । वह भगवान् बुद्धदेवके इस उपदेशके अनुसार कि-"सन्त पुरुष अपराधकी खोज करनेकी अपेक्षा अपराध क्यों हुआ है, इसके खोज निकालने में अधिक परिश्रम करते हैं " पूर्व कर्मोंके निरीक्षण करनेका प्रयत्न करता था । वह उन कर्मोंकी मीमांसा कर रहा था, जिनके कारण आरादने उसके मारनेका प्रयत्न किया था और वह स्वयं मरता मरता बच गया था। एकाएक उसकी मुद्रा पलट गई । वह अपने दिव्य चक्षुओंसे इस प्रकार देखने लगा, मानो गुरुदेवने ही उसके अन्तःकरणके कपाट खोल दिये हैं । वस्तुका रहस्य उसकी समझमें आने लगा। उस क्षत्रियके पूर्व कर्म उसकी दृष्टिके सन्मुख नृत्य करने लगे। ___ उसे ज्ञात हुआ कि विद्युल्लताके समान 'आराद' का स्थूलरूप क्षण क्षणमें परिणमन कर रहा है । अज्ञानसे और उसके कारण बाँधे हुए पापकोंसे प्राणियोंको जो जो कष्ट सहन करने पड़ते हैं, उनका साक्षात् स्वरूप उस समय उसके ज्ञानका विषय हो गया! थोड़ी देर में जैसे कोई स्वप्नसे जागृत होता है, उसी प्रकारसे राजाने सचेत होकर उस क्षत्रियकुमारसे कहा:-"भाई, तुम्हारे सम्बन्धमें मैं इतना ही जानता हूँ कि तुम मेरे बन्धु हो मेरे और तुम्हारे स्वरूप में
SR No.010681
Book TitleFulo ka Guccha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNathuram Premi
PublisherHindi Granthratna Karyalaya
Publication Year1918
Total Pages112
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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