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________________ रवीन्द्र-कथाकुक्ष 12 ओटमें छिपी हुई कुण्ठिता भारत-भूमिका निरीक्षण करने लगे, तब धिक्कारके मारे उनका हृदय फटने लगा और दोनों नेत्रोंसे अग्नि-ज्वालामयी अश्रुधारा बहने लगी। ___ उन्हें एक कहानी याद आ गई । एक गधा राजपथसे होकर देवप्रतिमाका रथ खींच रहा था और पथिकवर्ग उसके सामने धूलमें लोट कर प्रतिमाको प्रणाम करता था। मूर्ख गधा अपने मनमें सोचता था कि सब लोग मेरा ही आदर कर रहे हैं। प्रमथनाथने मन ही मन कहा कि उस गधेमें और मुझमें इतना ही अन्तर है कि मैंने आज समझ लिया है कि सम्मान मेरा नहीं, मेरे शरीरके बोझका किया जाता है। प्रमथनाथने घर आकर सब बालबच्चोंको इकट्ठा किया और अग्नि जलाकर विलायती कपड़े-लत्तोंको उसमें एक एक करके डालना शुरू किया । अग्नि-शिखा जितनी ही ऊँची उठने लगी, बच्चे उतने ही आनन्दके साथ नृत्य करने लगे। ___ तबसे प्रमथनाथ तो अंगरेजोंकी चायका चम्मच और रोटीका टुकड़ा छोड़कर फिरसे घरके कोने के दुर्गमें दुर्गम होकर बैठ रहे ; परन्तु पूर्वोक्त अपमानित उपाधिधारी लोग पहलेके ही समान फिर अँगरेजोंके द्वारपर सलाम बजाते नजर आने लगे। दैवदुर्योगसे अभागे नवेन्दुशेखरको इसी परिवारकी मँझली बहनके साथ शादी करनी पड़ी। इस घरकी लड़कियाँ जिस तरह लिखना पढ़ना जानती थीं, उसी तरह देखने सुनने में भी सुन्दरी थीं। नवेन्दुने सोचा कि मैंने बहुत बड़ी विजय पाई। किन्तु यह बात प्रमाणित करने में उन्होंने देरी नहीं की कि मुझे पाकर तुम लोगोंको भी कम विजय प्राप्त नहीं हुई है । समय समय पर
SR No.010680
Book TitleRavindra Katha Kunj
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNathuram Premi, Ramchandra Varma
PublisherHindi Granthratna Karyalaya
Publication Year1938
Total Pages199
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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