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________________ राजतिलक प्रमथनाथ विलायतसे यह सोचकर पाये कि मैं लोगोंको इस बातका अपूर्व दृष्टान्त दिखाऊँगा कि अँगरेजोंके साथ, बराबरीकी रक्षा करते हुए, किस तरहका व्यवहार किया जा सकता है। जो लोग यह कहा करते हैं, कि नत हुए बिना अँगरेजोंके साथ मेल-मिलाप नहीं होता, वे अपनी हीनता प्रकाशित करते हैं और अँगरेजोंको व्यर्थ ही दोषी बनाते हैं। प्रमथनाथने विलायतके बड़े बड़े लोगोंसे अनेक परिचयपत्र और प्रशंसापत्र लाकर भारतवर्ष के अंगरेजोंमें थोड़ी-सी प्रतिष्ठा भी प्राप्त कर ली । यहाँ तक कि बीच बीचमें वे अपनी स्त्रीके सहित अँगरेजोंकी चा, डिनर, और हँसी-मजाकका भी कुछ हिस्सा पाने लगे। इस सौभाग्यमदकी मत्ततासे उनकी रगोंमें रक्तका प्रबाह कुछ तेजीके साथ होने लगा। इसी समय एक नई रेलवे लाइन खोलने के लिए रेलवे कम्पनीका निमंत्रण पाकर छोटे लाटके साथ देशके अनेक राज-प्रसाद-गर्वित बड़े आदमियों ने गाड़ीपर लदकर उस नये लोह-पथकी यात्रा की । प्रमथनाथ भी उनमेंसे एक थे। लौटने के समय एक अँगरेज इन्स्पेक्टरने उक्त देशी बड़े आदमियोंको बहुत ही अपमानके साथ एक विशेष गाड़ी परसे उतार दिया । अँगरेजवेषधारी प्रमथनाथको भी गाड़ीसे उतरनेको तैयार देखकर इन्स्पेक्टरने कहा-आप क्यों उतरते हैं ? बैठिए न । प्रमथनाथ पहले तो इस विशेष सम्मानसे फूल उठे ; परन्तु जब गाड़ी चल दी और तृण-हीन कर्षण-धूसर पश्चिम प्रान्तकी सीमासे ग्लान सूर्यास्तकी श्राभा सकरुण रक्तिम लजाके समान समस्त देशके ऊपर फैल गई और जब वे अकेले बैठे बैठे खिड़कियोंमेंसे अनिमेष नेत्रोंसे वनोंकी
SR No.010680
Book TitleRavindra Katha Kunj
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNathuram Premi, Ramchandra Varma
PublisherHindi Granthratna Karyalaya
Publication Year1938
Total Pages199
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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