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________________ पड़ोसिन करनेके लिए मैं अपनी सारी शक्तियाँ लगा दूंगा । केवल व्याख्यान झाड़कर और लेख ही लिखकर नहीं, बल्कि आर्थिक सहायता देनेके लिए भी मैंने अपना हाथ बढ़ाया। नवीन मेरे साथ तर्क करने लगा। उसने कहा-चिर वैधव्यके भीतर एक पवित्र शान्ति है और एकादशीकी क्षीण ज्योत्स्नालोकित समाधि-भूमिके समान एक विराट रमणीयता है । विवाहकी संभावना मात्रसे ही क्या वह शान्ति नष्ट नहीं हो जायगी ? इस प्रकारकी कवित्वपूर्ण बातें सुनकर मुझे गुस्सा आ जाता है। जो लोग दुर्भिक्षके मारे मर रहे हैं, उनके आगे यदि कोई आहारपुष्ट श्रादमी खाद्यकी स्थूलताके प्रति घृणा प्रकाशित करके फूलोंकी गन्ध और पक्षियोंके गानसे उनका पेट भर देना चाहे, तो बतलाइए वह कैसा मालूम होगा? ____ मैंने क्रुद्ध होकर कहा- देखो नवीन, आर्टिस्ट (चित्रकार ) लोग कहा करते हैं कि दृश्यके हिसाबसे जले हुए मकानमें बड़ा भारी सौन्दर्य है। किन्तु घरको केवल चित्रकी दृष्टिसे नहीं देखा जा सकता, उसमें निवास करना पड़ता है-श्रतएव आर्टिस्ट चाहे जो कहें, परन्तु उसकी मरम्मत करना आवश्यक है । तुम तो वैधव्यपर दूरसे ही दिव्य कविता करना चाहते हो, परन्तु तुम्हें यह ख़याल नहीं पाता कि उसके भीतर एक आकांक्षापूर्ण मानव हृदय अपनी विचित्र वेदनाओंको लिये हुए निवास कर रहा है। ___ मैंने समझा था कि नवीन माधव किसी तरह मेरे दलमें नहीं था सकेगा और इसी कारण मैंने उस दिन कुछ अधिक तपाकके साथ बातचीत की। किन्तु एकाएक देखा कि मेरे व्याख्यानके अन्तमें नवीन माधव परास्त हो गया, उसने केवल एक ही गहरी साँस लेकर मेरी सारी बातें
SR No.010680
Book TitleRavindra Katha Kunj
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNathuram Premi, Ramchandra Varma
PublisherHindi Granthratna Karyalaya
Publication Year1938
Total Pages199
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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