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________________ अतिथि तारापदने तुरन्त उत्तर दिया-हाँ, मैं अँगरेजी पढू गा । मोतीलाल बाबूने बहुत प्रसन्नतासे गाँवके स्कूलके हेडमास्टर बाबू रामरतनको नित्य सन्ध्या समय आकर उस बालकको पढ़ाने के कामपर नियुक्त कर दिया तारापद अपनी प्रखर स्मरणशक्ति और अखंड मनोयोगसे अँगरेजी सीखने लगा । वह मानो एक नवीन और दुर्गम राज्यमें भ्रमण करनेके लिए बाहर निकल पड़ा । उसने अपने पुराने संसारके साथ कोई सम्बन्ध नहीं रक्खा । अब वह गाँवके लोगोंको पहलेकी भाँति जहाँ तहाँ घूमता दिखाई नहीं देता। जब वह सन्ध्याके समय निर्जन नदी-तटपर जल्दी जल्दी चलता हुआ अपना पाठ कण्ठ किया करता, तब उसका उपासक बालक-सम्प्रदाय दूरहीसे कुछ दुःखी चित्तसे आदरपूर्वक उसे देखा करता ; उसके पाठमें बाधा देनेका उसे साहस नहीं होता। ___ चारुको भी आजकल वह बहुत अधिक नहीं दिखाई देता। पहले तारापद अन्तःपुरमें जाकर अन्नपूर्णाकी स्नेहपूर्ण दृष्टिके सामने बैठकर भोजन किया करता था । पर इससे बीच बीचमें उसे कुछ विलम्ब हो जाया करता था; इसलिए उसने मोतीलाल बाबूसे अनुरोध करके अपने लिए बाहर ही भोजन मँगानेकी व्यवस्था कर ली। इसपर अन्नपूर्णाने दुःखी होकर विरोध भी किया। परन्तु मोतीलाल बाबू पढ़ने लिखनेमें बालकका उत्साह देखकर बहुत सन्तुष्ट थे ; इसलिए उन्होंने इस व्यवस्थाका अनुमोदन कर दिया । ___ उसी समय चारु भी सहसा जिद कर बैठी कि मैं भी अँगरेजी पद् गी। उसके माता-पिताने पहले अपनी अल्हड़ लड़कीके इस प्रस्ताव
SR No.010680
Book TitleRavindra Katha Kunj
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNathuram Premi, Ramchandra Varma
PublisherHindi Granthratna Karyalaya
Publication Year1938
Total Pages199
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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