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________________ ८ की हुई सज्जनो की संगति ससार समुद्र को पार करने हेतु नौका सदृश होती है) सत्पुरुषो की संगति करने वाले को योग्य शुभ पुष्प का अर्जन कृतज्ञताभाव के कारण अवश्य होता है। इस जगत मे अर्थ का दान करने वाले अभी भी मिल सकते हैं पर हृदय से सन्मान का दान प्रदान करने वाले दुर्लभ होते है । जिनका चित्त नमस्कार मे नही लगता है उनको समझना चाहिये कि योग्य को योग्यदान देने की उदारता उनके हृदय अभी प्रकट नही हुई है । कृपणता का नाश कृतज्ञता से होता है तथा कृतज्ञता का पालन सर्वश्रेष्ठ दातारो को सन्मान का दान देने से होता है । सर्वोत्कृष्ट शरणागति श्री नमस्कार महामन्त्र ही सर्वोत्कृष्ट गर्हा, सर्वोत्कृष्ट अनुमोदना तथा सर्वोत्कृष्ट शरणागति का मन्त्र है । सभी पापो को सर्वथा नष्ट करने का प्रणिधान श्री नमस्कार महामन्त्र मे है जो सर्वोत्कृष्ट गर्हा का परिणाम सूचित करता है । सर्वमगलो मे प्रधान तथा प्रथम मगल नमस्कार है जो सर्वोत्कृष्ट शरणागति का तथा सर्वोत्कृष्ट अनुमोदना का परिणाम है । 'नमो' पद सर्वोत्कृष्ट शरणागति का सूचक है क्योकि उसमे एक तरफ हाथ, सिर आदि सर्वाङ्ग का समर्पण है एवं दूसरी तरफ उसके द्वारा आत्मा के सर्व प्रदेशो का समर्पण है । तीन करण, तीन योग, सात धातु, दस प्रारण, सर्वरोम तथा सर्वरोम तथा प्रदेशो से होती शरणागति श्री नमस्कार महामन्त्र का सर्वोत्कृप्ट वाच्य है । भव्यत्व परिपार्क की समग्र सामग्री एक साथ सगृहीत हो नमस्कार महामन्त्र मे समायोजित हो जाती है ।
SR No.010672
Book TitleMahamantra ki Anupreksha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhadrankarvijay
PublisherMangal Prakashan Mandir
Publication Year1972
Total Pages215
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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