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________________ अवस्था 'नमो' मन्त्र से साधक को सहज ही प्राप्त होती है | 'नमो' नमन - परिणमन एकार्थक हैं । जिससे आत्मा का शुद्ध स्वरूप मे परिणमन होता है । वह 'नमो' मन्त्र है । प्रत यह परम रहस्यमय माना जाता है । सन्मान का सर्वोत्कृष्ट दान दान का प्रानन्द जीवन का सर्वश्रेष्ठ ग्रानन्द है । यह 'नमो' सर्वश्रेष्ठ पुरुषो को दिया जाने वाला सर्वश्रेष्ठ दान है । सभी दानो मे श्रेष्ठ दान सन्मान का दान है। दान के सर्वश्रेष्ठ पात्र श्री पच परमेष्ठि भगवान् हैं । जो चित्त के शुभ भाव से पच परमेष्ठि भगवान् को 'नमो' मन्त्र से निरन्तर सन्मान का दान करते हैं वे मानव जन्म प्राप्त कर अश मात्र भी करने योग्य कार्य करके कृतार्थता का अनुभव करते हैं मे कृतज्ञता का भाव रहता है । दुर्गति मे पडते हुए जीवो को श्री परमेष्ठि भगवान् नमस्कार मात्र से परम आलम्बन प्रदान करते हैं तथा अपने विशुद्ध जीवन से परम आदर्श तथा भवसागर तरणार्थ नौका सदृश परमतीर्थ को स्थापित कर लाखो, करोडो तथा असख्य जीवो को रत्नत्रय (त्रिरत्न) का मुक्तहस्त से दान करते है । । परमेष्ठि नमस्कार ऐसे परमदाता को उनके योग्य सन्मान देना ही सभी कृतज्ञ जीवो का परम कर्त्तव्य है । कृतज्ञता ही पात्रता समायोजन एव योग्यता विकसित करने का प्रथम सोपान है । जो उपकारी जनो के प्रति निरन्तर कृतज्ञता का भाव प्रदर्शित करते हैं वे ही भवारण्य मे सुरक्षित रहते है । वे जहाँ भी जाते हैं वहां यह कृतज्ञता का गुरण उनका उत्तम श्रात्माओ से समागम करवाकर उनके स्नेह का भाजन बनवाता है । कहा है- " क्षरणमपि सज्जन संगतिरेका भवति भवार्णव तरणे नोका" (अर्थात् क्षणमात्र भी
SR No.010672
Book TitleMahamantra ki Anupreksha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhadrankarvijay
PublisherMangal Prakashan Mandir
Publication Year1972
Total Pages215
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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