SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 81
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ कल्याण का मार्ग श्री नमस्कार महामन्त्र के उपकार अनन्त है तथा उसने मुक्तिगमन हेतु अनन्त-आत्माओ को परमावलम्बन प्रदान किया है। श्री नमस्कार महामन्त्र का आधार लेकर सभी तीर्थकरो, गणधरो, श्रुतधरो एव दूसरे ज्ञानी महापुरुपो ने परमपद प्राप्त किया है । यह हमारा कितना सौभाग्य है कि सभी महापुरुषो को आधार प्रदान करने वाला ऐसा महामन्त्र हमे अभी मिला है । इस प्रकार श्री नमस्कार महामन्त्र का गौरव हृदय मे धारण कर उसका आलम्बन लेने वाला दुर्गति मे पडती हुई अपनी आत्मा को बचा सकता है तथा सद्गति को परम सुलभ बना सकता है । पालम्वन के आदर से उत्पन्न पुण्य ही विघ्नो का क्षय करता है एव पतनोन्मुख अपनी आत्मा को ठीक समय ज्वार लेता है। नीचे गिरते हुए को बचाने वाले एवं ऊँचे चढने मे पालम्वनभूत होने वाली प्रत्येक वस्तु को परम आदर से देखने की हमे आदत डालनी चाहिए । इस आदत का अभ्यास ही जीव को आत्मविकास मे आगे बढाने वाला होता है। श्री नवकारमन्त्र इस प्रकार कल्याण का मार्ग सिखाता है । मन्त्र-चैतन्य की जागृति श्री नमस्कार मन्त्र के उच्चारण के साथ ही प्राणो की गति उर्व-उच्च होने लगती है एव सभी प्राण (पाँच इन्द्रिय-मन वचन काया श्वोसोच्छ वास आयु) एक साथ परमात्मा से सम्वद्ध हो जाते है । मन्त्र के उच्चारण के साथ ही मन एव प्राण उर्ध्व गति को धारण करते है, कर्म का क्षयोपशम होता है, कर्म की अशुभ प्रकृति का स्थिति-रस घट जाता है एवं शुभ प्रकृति का स्थिति-रम बढ जाता है.। सत् क्षयोपशम होने से सद्बुद्धि उत्पन्न होती है एव यह सद्बुद्धि गुरुतत्त्व का कार्य
SR No.010672
Book TitleMahamantra ki Anupreksha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhadrankarvijay
PublisherMangal Prakashan Mandir
Publication Year1972
Total Pages215
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy