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________________ सिद्धि करवाने वाली होने से मात्र शरीर स्वास्थ्य को सुधारने वाले द्रव्य प्राणायाम की अपेक्षा उत्कृष्ट है। उसका आराधन प्रथम पद के आलम्बन से सुन्दर प्रकार से होने से प्रथम पद अत्यन्त उपादेय है। आगमो मे नमस्कार पद का अर्थ निम्न प्रकार से कहा गया है मणसा गुण परिणामो, वाया गुण भासणं च पंचरहे । कायेण सपणामो, एस पयत्थो नमुक्कारो ॥ मन से पचपरमेष्ठि के गुणों का परिणमन, वाणी से। पचपरमेष्ठि के गुणो का भापण तथा काया से पचपरमेष्ठि भगवान् को सम्यक् प्रणाम करना ही नमस्कार पद का अर्थ है। नमो पद द्वारा मन मे गुणो का परिणाम होता है, अरिह पद द्वारा गुणो का भाषण होता है तथा ताण पद द्वारा काया का प्रणमन होता है। अथवा तीनो पद मिलकर परमेष्ठि भगवान् के गुणो का परिणमन, भाषण तथा प्रगमन करवाते है तथा उससे मन, वचन, काया के तीनो योगो का सार्थक्य होता है। भव्यत्व परिपाक के उपाय एवं प्राभ्यन्तर तप नवकार के प्रथम पद के जाप तथा ध्यान द्वारा भव्यत्व परिपाक के तीनो उपाय क्रमश. दुष्कृत गहीं, सुकृतानुमोदन तथा शरण गमन एक ही साथ सावित होते है । अभ्यन्तर तप के भी छो प्रकार क्रमश. प्रायश्चित, विनय, वैयावच्य, स्वाध्याय, ध्यान तथा कार्योत्सर्ग का भी एक ही साथ सेवन होता है।
SR No.010672
Book TitleMahamantra ki Anupreksha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhadrankarvijay
PublisherMangal Prakashan Mandir
Publication Year1972
Total Pages215
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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