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________________ ३८ नमो पद दुष्कृत की गर्दा करवाता है, ग्ररिह पद सुकृत की प्रनुमोदना करवाता है तथा तारण पद शरण गमन की क्रिया करवाता है । इसी प्रकार नमो पद द्वारा पाप का प्रायश्चित तथा गुणों का विनय होता है, रिह पद द्वारा भाव वैयावच्य एव स्वाध्याय होता है तथा तारण पद द्वारा परमात्मा का ध्यान एव देहभाव का विसर्जन होता है । दुष्कृत गर्हादि द्वारा जीव की मुक्तिगमन - योग्यता परिपक्व होती है तथा प्रायश्चित - विनयादि तप द्वारा क्लिष्ट कर्मों का विगम तथा भाव-निर्जरा होती है । समापत्ति, आपत्ति एवं सम्पत्ति नवकार के प्रथम पद मे व्याता ध्येय तथा ध्यान तीनो की एकता रूप समापत्ति साधित होती है । प्रत तीर्थंकर नाम कर्म के उपार्जन रूप आपत्ति तथा उसके विपाकोदय रूप सम्पत्ति की भी प्राप्ति होती है । 'नमो' पद ध्याता की रिह , पद ध्येय की तथा तारण पद ध्यान की शुद्धि सूचित करता है । इन तीनो की शुद्धि द्वारा तीनो की एकता रूप समापत्ति तथा उसके परिणामस्वरूप प्रापत्ति अर्थात् तीर्थकर नाम कर्म का उपार्जन तथा वाह्यान्तर सम्पत्ति प्राप्त होती है । 1 ज्ञानसार ग्रन्थ के ध्यानाष्टक मे कहा गया है कि ध्याता ध्येय तथा ध्यान, त्रय यस्यैकतां गतम् । मुनेरनन्यचित्तस्य तस्य दुःखं न विद्यते ॥ १ ॥ ध्याताऽन्तरात्मा ध्येयस्तु, परमात्मा प्रकीर्तित | ध्यान चैकाय सवित्ति समापत्तिस्तदेकता ||३|| आपत्तिश्च तत पुण्य तीर्थकृत् कर्म बन्धत | तद्भावाभिमुखत्वेन, सम्पत्तिश्च क्रमाद्भवेत् ||३|| इत्थ ध्यान फलाद्युक्त, विंशतिस्थानकाद्यपि । कष्टमात्र त्वभव्यानामपि नो दुर्लभ भवे ॥४॥ , --
SR No.010672
Book TitleMahamantra ki Anupreksha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhadrankarvijay
PublisherMangal Prakashan Mandir
Publication Year1972
Total Pages215
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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