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________________ प्रीति, भक्ति, वचन व असग ये चारो प्रकार के अनुष्ठान की प्राप्ति करवाकर निर्विघ्न रूप से जीवो को मोक्ष मे ले जाता है। योग के पाचो अग जैसे स्थान, वर्ण, अर्थ, पालवन तथा अनालवन तथा आगमोक्त योग की आठो अवस्थाए जैसे तच्चित्, तन्मय, तल्लेश्य, तदध्यवसाय, तत्तीव्र अध्यवसाय तदर्थोपयुक्त, तर्पितकरण तथा तद्भावनाभावित पर्यन्त को अवस्था प्रथम पद के पालवन द्वारा सिद्ध की जा सकती है। ___ द्रव्य-क्रिया को भाव-क्रिया बनाने वाली तथा तद् हेतु अनुष्ठान को अमृत अनुष्ठान बनाने वाली जिन चित्तवृत्तियो को शास्त्रकारो ने कहा है, उन सबका पाराधन प्रथम पद के आलम्बन द्वारा हो सकता है। अर्थ का आलोचन, गुण का राग तथा भाव की वृद्धि ये तीन गुण द्रव्य क्रिया को भावक्रिया वनाते हैं तथा तद्गत चित्त, शास्त्रोक्त विधान, भाव की वृद्धि, भव का भय, विस्मयपुलक एव प्रधान प्रमोद उस तद्-हेतु अनुष्ठान को अमृत अनुष्ठान बनाते है । इस हेतु कहा गया है कि --- तद्गत चित्त ने समय विधान, भावनी वृद्धि भय, भय अति घणोजी, विस्मय पुलक प्रमोद प्रधान, लक्षण ए छे अमृत क्रिया तणोजी। भाव प्राणायाम का कार्य नमो पद वाह्यभाव का रेचन करवाता है, प्रान्तरभाव का पूरक वनता है तथा परमात्मभाव का कुभक करवाता है जिससे वह भाव-प्राणायाम का कार्य भी करता है। भावप्राणायाम ज्ञानावरण का क्षय तथा योग के ऊपर के ध्यानादि अङ्गो की
SR No.010672
Book TitleMahamantra ki Anupreksha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhadrankarvijay
PublisherMangal Prakashan Mandir
Publication Year1972
Total Pages215
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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