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________________ mmmmmmmmmmmmmmmmmmmmm स्वयम्भूस्तोत्र नाको लिये हुए हैं । और इससे यह स्पष्ट जाना जाता है कि दया, दम, त्याग और समाधि इन चारोंमें वीरशासनका सारा कर्मयोग समाविष्ट है। यम, नियम, संयम, व्रत, विनय, शील, तप. थ्यान, चारित्र, इन्द्रियजय. कषायजय, परीषहजय, मोह विजय, कविजय, गुप्ति समिति, अनुप्रेक्षा, त्रिदण्ड, हिंसादिविरति और क्षमादिकके रूपमें जो भी कर्मयोग अन्यत्र पाया जाता है वह सब इन चारोंमें अन्तर्भत है-इन्हींकी व्याख्यामें उसे प्रस्तुत किया जा सकता है। चुनांचे प्रस्तुत ग्रन्थमें भी इन चारोंका अपने कुछ अभिन्न संगी-साथियोंके साथ इधर इधर प्रसृत निर्देश है; जैसा कि ऊपरके संचयन और विवेचनसे स्पष्ट है। इस प्रकार यह ग्रन्थके सारे शरीरमें व्याप्त कर्मयोग-रसका निचोड़ है-सत है अथवा सार है, जो अपने कुछ उपयोग-प्रयोगको भी साथमें लिये हुए है। तीनों योगोंके इस भारी कथनको लिये हुए प्रस्तुत स्तोत्रपरसे यह स्पष्ट जाना जाता है कि स्वामी समन्तभद्र कैसे और कितने उच्च कोटिके भक्तियोगी, ज्ञानयोगी और 'कर्मयोगी थे और इसलिये उनके पद-चिह्नोंपर चलनेके लिए हमारा आचार-विचार किस प्रकारका होना चाहिए और कैसे हमें उनके पथका पथिक बनना अथवा आत्महितकी साधनाक साथ साथ लोक-हितकी साधनामें तत्पर रहना चाहिये। वीरसेवामन्दिर, सरसावा । जुगलकिशोर मुख्तार. ता० १७ - १ - १६५१ ।
SR No.010650
Book TitleSwayambhu Stotram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1951
Total Pages206
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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