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समन्तभद्रका संक्षिप्त परिचय
इस ग्रन्थके सुप्रसिद्ध कर्ता स्वामी समन्तभद्र हैं, जिनका आसन जैनसमाजके प्रतिभाशाली आचार्यों, समर्थ विद्वानों तथा लेखकों और सुपूज्य महात्माओंमें बहुत ऊंचा है। आप जैनधर्मके मर्मज्ञ थे, चीरशासन के रहस्यको हृदयङ्गम किये हुए थे, जैन'धर्मकी साक्षात् जीती-जागती मूर्ति थे और वीरशासनका अद्वितीय प्रतिनिधित्व करते थे; इतना ही नहीं बल्कि आपने अपने समयके सारे दर्शनशास्त्रोंका गहरा अध्ययन कर उनका तलस्पर्शी ज्ञान प्राप्त किया था और इसीसे आप सब दर्शनों, धर्मों अथवा मतोंका सन्तुलनपूर्वक परीक्षण कर यथार्थ वस्तुस्थितिरूप सत्यको ग्रहण करने में समर्थ हुए थे और उस असत्यका निर्मूलन करने में भी प्रवृत्त हुए थे जो सर्वथा एकान्तवादके सूत्रसे संचालित होता था। इसीसे महान् आचार्य श्रीविद्यानन्द स्वामीने युक्त्यनुशासन-टीकाके अन्त्रमें आपको 'परीक्षेक्षण-परीक्षानेत्रसे सबको देखनेवाले—लिखा है और अष्टसहस्रीमें आपके वचन-माहात्म्यका बहुत कुछ गौरव ख्यापित करते हुए एक स्थान'पर यह भी लिखा है कि-'स्वामी समन्तभद्रका वह निर्दोष प्रव
चन जयवन्त हो-अपने प्रभावसे लोकहृदयोंको प्रभावित करे‘जो नित्यादि एकान्तगर्ता में वस्तु कूटस्थवत् सर्वथा नित्य ही है 'अथवा क्षण-क्षणमें निरन्वय-विनाशरूप सर्वथा क्षणिक (अनित्य) ही है, इस प्रकारकी मान्यतारूप एकान्त खड्डोंमें पड़नेके लिये विवश हुए प्राणियोंको अनर्थसमूहसे निकालकर मंगलमय उच्च पद प्राप्त करानेके लिए समर्थ है, स्याद्वादन्यायके मार्गको प्रख्यात करनेवाला है, सत्यार्थ है, अलंध्य है, परीक्षापूर्वक प्रवृत्त हुआ है