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________________ प्रस्तावना ८१ पदके द्वारा परमकरुणाभावसे-असाधारण-दया-सम्पत्तिसेसम्पन्न भी सूचित किया है । इस तरह दम, त्याग और समाधि ( तथा उनसे सम्बन्धित यम-नियमादिक ) सबमें दयाकी प्रधानता है ! इसीसे मुमुक्षुके लिये कर्मयोगके अङ्गोंमें 'दया'को अलग हो रखा गया है और पहला स्थान दिया गया है। स्वामी समन्तभद्र ने अपने दूसरे महान ग्रन्थ 'युक्त्यनुशासन'. में कर्मयोगके इन चार अङ्गों दया. दम, त्याग और समाधिका इसी क्रमसे उल्लेख किया है और साथ ही यह निर्दिष्ट किया है कि वीरजिनेन्द्रका शासन (मत) नय-प्रमाणके द्वारा वस्तु-तत्त्वको स्पष्ट करनेके साथ साथ इन चारोंकी तत्परताको लिये हुए है, ये सब उसकी खास विशेषताएं हैं और इन्हींके कारण वह अद्वितीय है तथा अखिल प्रवादियोंके द्वारा अधृष्य हैअजय्य है। जैसा कि उक्त ग्रन्थकी निम्न जारिकासे प्रकट है:दया-दम-त्याग-समाधि-निष्ठं नय-प्रमाण-प्रकृताञ्जसार्थम् । अधृष्यमन्यैरखिलैः प्रवार्जिन ! त्वदीयं मतमद्वितीयम् ॥६।। यह कारिका बड़े महत्वकी है। इसमें वीरजिनेन्द्र के शासनका बीज-पदोंमें सूत्ररूपसे सार संकलन करते हुए भक्तियोग और कर्मयोग तीनोंका सुन्दर समावेश किया गया है। इसका पहला चरण कर्मयोगकी, दूसरा चरण ज्ञानयोगकी और शेष तीनों चरण प्रायः भक्तियोगकी संसूच १ श्री विद्यानन्दाचार्य इस क्रमकी सार्थकता बतलाते हुए टीकामें लिखते हैं-निमित्त नैमित्तिक-भाव-निबन्धनः पूर्वोत्तर-वचन-क्रमः । दया हि निमित्तम् दमस्य, तस्यां सत्यां तदुत्पत्त: । दमश्च त्यागस्य (निमित्तं) तस्मिन्सति तद्घटनात् । त्यागश्च समाधेस्तस्मिन्सत्येव विक्षेपादिनिवृत्तिसिद्ध रेकाग्रस्य समाधिनिशेपस्योत्पत्तः. अन्यथा तदनुपपत्त: ।”
SR No.010650
Book TitleSwayambhu Stotram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1951
Total Pages206
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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