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________________ प्रस्तावना marrive ~ ~ ~ ~ - ~ ~ अविवक्षित विशेषण-विशेष्यका 'स्यात्' शब्दसे परिहार हो जाता है जिसकी उक्त मतमें सर्वत्र प्रतिष्ठा रहती है (६४)। जो नय स्यात्पदरूप सत्यसे चिह्नित हैं वे रसोपविद्ध लोह-धातुओंकी तरह अभिप्रेत फलको फलते हैं यथास्थित वस्तुतत्त्वके प्ररूपणमें समर्थ होकर सन्मार्गपर ले जाते हैं (६५)। (१४) मोह पिशाच, जिसका शरीर अनन्त दोषोंका आधार है और जो चिरकालसे आत्माके साथ सम्बद्ध होकर उसपर अपना आतङ्क जमाए हुए है, तत्त्वश्रद्धामें प्रसन्नता धारण करनेसे . जीता जाता है (६४)। कषाय पीडनशील शत्र हैं, उनका नाम निःशेष करनेसे-आत्माके साथ उनका सम्बन्ध पूर्णतः विच्छेद कर देनेसे-मनुष्य अशेषवित् (सर्वज्ञ) होता है। कामदेव विशेष रूपसे शोषक-संतापक एक रोग है, जिसे समाधिरूप औषधके गुणोंसे विलीन किया जाता है (६७) । तृष्णा नदी परिश्रम-जलसे भरी है और उसमें भयरूप तरंग मालाएँ उठती हैं। वह नदी अपरिग्रहरूप ग्रीष्मकालीन सूर्य की किरणोंसे सुखाई जाती हैपरिग्रहके संयोगसे वह उत्तरोत्तर बढ़ा करती है (६८)। (१५) तपश्चरणरूप अग्नियोंसे कमवन जलाया जाता है और शाश्वत सुख प्राप्त किया जाता है (७१)। (१६) दयामूर्ति बननेसे पापकी शांति होती है ७६; समाधिचक्रसे दुर्जय मोहचक्र-मोहनीय कमका मूलोत्तर-प्रकृति-प्रपंचजीता जाता है ७७ ; कर्म-परतंत्र न रहकर आत्मतन्त्र बनने पर आईन्त्य-लक्ष्मीकी प्राप्ति होती है ७८ ; ध्यानोन्मुख होनेपर कृतान्त(कम)चक्र जीता जाता है ७६ ; अपने राग-द्वेष-कामक्रोधादि दोष-विकार ही आत्मामें अशान्तिके कारण हैं, जो अपने दोषोंको' शान्त कर आत्मामें शान्तिकी प्रतिष्ठा करनेवाला
SR No.010650
Book TitleSwayambhu Stotram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1951
Total Pages206
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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