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________________ H प्रस्तावना उस प्रभासे शोभताहै जो सब ओरसे धवल है। उनका शासनविभव कलिकाल में भी जयको प्राप्त है और उसकी वे निर्दोष साधु (गणधरादिकदेव ) भी स्तुति करते हैं जिन्होंने अपने ज्ञानादि-तेजसे आसन-विभुओंको-लोकके प्रसिद्धनायकोंकोनिस्तेज किया है। उनका स्याहादरूप प्रवचन दृष्ट और इष्टके साथ विरोध न रखनेके कारण निर्दोष है, जब कि दूसरोंकाअस्याद्वादियोंका-प्रवचन उभय विरोधको लिये हुए होनेसे वैसा नहीं है । वे सुरा-सुरोंसे पूजित होते हुए भी ग्रन्थिक सत्वोंकेमिथ्यात्वादि परिग्रहसे युक्त प्राणियोंके-(अभक्त) हृदयसे प्राप्त होनेवाले प्रणामोंसे पूजित नहीं है। और अनावरणज्योति होकर उस धामको-मुक्तिस्थान अथवा सिद्धशिलाको-प्राप्त हुए हैं जो अनावरण-ज्योतियोंसे प्रकाशमान है। वे उस गुणभूषणको-सर्वज्ञ-वीतरागतादि गुणरूप आभूषण-समूहकोधारण किए हुए थे जो सभ्यजनों अथवा समवसरण-सभास्थित भव्यजनोंको रुचिकर था और श्रीसे-अष्टप्रातिहार्यादिरूपविभूतिसे-ऐसे रूपमें पुष्ट था जिससे उसकी शोभा और भी बढ़ गई थी । साथही, उनके शरीरका सौन्दर्य और आकर्षण पूर्णचन्द्रमासे-भी बढ़ा चढ़ा था। उन्होंने निष्कपट यम और दमका-महाव्रतादिके अनुष्ठान और कषायों तथा इन्द्रियोंके जयका-उपदेश दिया है । उनका उदार विहार उस महाशक्तिसम्पन्न गजराजके समान हुआ है जो झरते हुए मदका दान देते हुए और मार्गमें बाधक गिरिभित्तियोंका विदारण करते हुए ( फलतः जो बाधक नहीं उन्हें स्थिर रखते हुए ) स्वाधीन चला - जाता है । वीरजिनेन्द्रने अपने विहारके समय सबको अहिंसाका अभयका-दान दिया है, शमवादोंकी-रागादिक दोषोंकी उपशांतिके प्रतिपादक आगमोंकी-रक्षा की है और वैषम्यस्थापक, हिंसाविधायक एवं सर्वथा एकान्त-प्रतिपादक उन सभी
SR No.010650
Book TitleSwayambhu Stotram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1951
Total Pages206
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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