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________________ अध्यात्म-रहस्य अपनेको आचार्य-गुरु-परम्परासे प्राप्त है और वह अनेक शास्त्रोंमें निबद्ध है। शास्त्र-निबद्ध अमुक उपदेश आसोपज्ञ है या कि नहीं? इसकी प्रमुख कसौटी यही है कि वह दृष्ट तथा इष्टके विरोधको तो लिये हुए नहीं है। यदि ऐसे विरोधको लिये हुए है तो समझना चाहिये कि वह आप्तोपज्ञ नहीं है, क्योंकि सर्वज्ञ वीतराग और परम हितोपदेशी प्राप्तका वचन स्वरूपतः सदा ही ऐसे विरोधसे रहित होता है । इसीसे यहाँ ध्येयकी ध्यानमें शासनाके लिये 'अदृष्टेष्टविरोधाद' पदकी खास तौरसे योजना की गई है। अब रही गुरुवाणीकी बात; जिस गुरुवाणीको यहाँ अति कहा गया है उसका अभिप्राय एकमात्र उस गुरुवाणीसे नहीं है जो साक्षात् गुरुने अपने मुखसे कही हो और शिष्यने अपने कानोंसे सुनी हो, बल्कि उस गुरुवाणीका भी अभिप्राय है जो गुरु-परम्परासे अपनेको प्राप्त हुई हो अथवा परम्परा-गुरुके द्वारा किसी शास्त्रमें निवद्ध की गई हो और उस शास्त्रको पढ़ने सुनने आदिके द्वारा यह अपनेको उपलब्ध हुई हो। धर्म्य और शुक्ल नामके जिन दो घानांका यहाँ उल्लेख है वे प्रशस्त ध्यान है, आध्यात्मिक दृष्टिसे उन्हींकी मान्यता है और वे ही आत्मविकासमें सहायक होनेसे उपादेय है। शेष प्रार्च और रौद्र नामके दूसरे दो ध्यान
SR No.010649
Book TitleAdhyatma Rahasya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1957
Total Pages137
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Spiritual, & Religion
File Size4 MB
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