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________________ m १४ सन्मति-विद्या प्रकाशमाला ___ व्याख्या-यहाँ सामान्यतः गुरुवाणी मात्रका नाम श्रुति नहीं है, किन्तु उस विशिष्ट-गुरुवाणीका नाम श्रुति है नो प्राप्तके द्वारा उपदिष्ट ध्येयको धर्म्य-ध्यान और शुक्लध्यानमें इस तरहसे आयोजित करनेकी व्यवस्था करती हो जिससे प्रत्यक्षादि प्रमाणोंके साथ कोई विरोध घटित न होता हो । दूसरे शब्दोंमें यों कहिये कि जिस गुरुवाणीकी स्वात्माको घHध्यान और शुक्लध्यानकी ओर लगाकर उसके ध्येयको प्राप्त करानेकी निर्दोष शासना हो उसे 'श्रुति' कहते हैं। यहाँ ध्येयका 'आप्तोपज्ञ' विशेषण इस वातको सूचित करता है कि वह ध्येय कोई यद्वा तद्वा पदार्थ न होना चाहिये, बल्कि वह होना चाहिये जो आप्तके द्वारा धर्म्यध्यान और शुक्लध्यानके उपयुक्त विपयरूपमें निर्दिष्ट हुआ है, और वह है आत्माका शुद्धस्वरूप, रहस्य तथा उसकी साधन-सामग्री। आप्तका लक्षण स्वामी समन्तभद्रने अपने समीचीन धर्मशास्त्र (रत्नकरण्ड) की 'प्राप्तेनोत्सन्नदोपेण सर्वज्ञेनाऽऽगमेशिना भवितव्यं' इत्यादि कारिकामें दिया है। इसके अनुसार जो वीतराग, सर्वज्ञ और आगमेशी अथवा परमहितोपदेशी हो उसे 'आप्त' समझना चाहिये और उसीके द्वारा उपदिष्ट ध्येयका यहाँ पर ग्रहण है । आप्तका उपदेश
SR No.010649
Book TitleAdhyatma Rahasya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1957
Total Pages137
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Spiritual, & Religion
File Size4 MB
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