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________________ श्लोक - 6 D 0 ४. प्रभु - मिलन 0 समस्त आवरण ओर अन्तराया से परिमुक्त मोह आर क्षोभ के जीतने वाले परमात्मा से अव्यावाध समाधि-स्वरूप का सधान हो रहा है। D विरह की वे भावात्मक घड़िया परिचय में पल्लवित होकर मिलन के रचनात्मक प्रवाह में बदल रही है-प्रवाहित हो रही हैं। राजा को आचार्यश्री का मिलन हुआ हे और आचार्यश्री का परमात्मा का मिलन हो रहा है। मिलन-मिलन में भी अन्तर है। एक मिलन विवाद उठा रहा था तो एक मिलन जनम-जनम का विवाद मिटा रहा था। एक उठ उठ कर रूट रहा था, एक मिट-मिट कर अमिट वन रहा था। बेडियां टूट रही थी, सिर्फ लोहे की ही नहीं, परमात्म भाव मे बाधक कर्मों की भी। केवल ५६ अक्षरा की अक्षर माला में भक्त अपना सम्पूर्ण परिचय परमात्मा के सामने पेश करता है। स्थान कोई भी होगा, काल कोई भी होगा, व्यक्ति कोई भी होगा। लेकिन भक्त हृदय का व्यक्तित्व " भक्तामर स्तोत्र" के तृतीय श्लोक से अतिरिक्त नही हो सकता। ऐसी एक चिरन्तन परिचय माला को परमात्मा के चरणो मे प्रस्तुत करते हुए मुनिश्री को परिस्थिति का बन्धा नही रोक पाया। इधर आप जानते हैं आचायश्री को बेड़िया के बधन मे डालकर पुलकित हो रहे राजा को जब इस बात का पता चला कि आचार्यश्री के अन्त करण से सस्कृत मे एक स्तोत्र प्रकट ही रहत है आर जैसे-जैसे एक-एक श्लोक का उच्चारण होता है बसे-वैसे आचार्यश्री के जगा पर लटकती हुई किलेबन्द देड़ियाँ टूटती चली जा रही है। उसने सोचा कि जिन शब्दों के माध्यम से ये बेड़िया टूटती चली जा रही है, क्या नहीं इन इलोका को आलेखित किया जाय ताकि ने भी भविष्य में इनका उपयोग कर सकूँ। उन्होंने नहिया (लेखक) को दुलाया। उसने ताड़पत्र पर लिखना शुरू किया।
SR No.010615
Book TitleBhaktamar Stotra Ek Divya Drushti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDivyaprabhashreeji
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year1992
Total Pages182
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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