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________________ २२ भक्तामर स्तोत्र . एक दिव्य दृष्टि आचाराग सूत्र श्रु १. अध्य ५, उद्दे ६, सूत्र ५७८ मे परमात्मरूप प्रकट करने की पाँच "तकार" की महत्वपूर्ण साधना पद्धति दर्शायी है१ तद्दिट्ठीए - सर्वाग्रहो को त्याग कर तरण तारणहार की दृष्टि मे एकरूप हो जाना। २ तम्मुत्तीए - परम स्वरूप मे तन्मय हो जाना। ३ तप्पुरक्कारे - परमात्मा को सदा आगे रखकर चलना अर्थात् उनके आदेश या आज्ञा के अनुसार जीना। ४ तस्सण्णी - परमात्मा के स्वरूप को अपने मन मे, अपने चित्त मे, अपने स्मरण मे निरतर रखना। ५ तन्निवेसणे - सदा सर्वदा उनके पास- उनके चरणो मे रहना। युग-युग तक चिरतन रहे, “भक्तामर स्तोत्र" द्वारा स्तुति करने वाले प्रत्येक भक्त का परिचय बन जाय ऐसा परिचय देकर अब मानतुगाचार्य मिलन की प्रथम रूपरेखा द्वारा अंतिम की आराधना मे लीन हो रहे हैं। हम भी परमात्म-मिलन की ओर आगे बढ़ेगे और चौथे श्लोक के द्वारा मिलन का मत्र पढ़ेगे।
SR No.010615
Book TitleBhaktamar Stotra Ek Divya Drushti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDivyaprabhashreeji
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year1992
Total Pages182
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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